SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 812
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८१६ ] [ महामणि चिंतामणि oreonmommomamewowwwomewoowwwwwwwwwwwwwwwwwwwcom wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwe का मार्ग जनजन के लिए प्रशस्त करते हैं। गौतम चौदह पूर्वो के ज्ञाता-अनन्तज्ञानी हैं; परंतु, साधु-साध्वियों के लिए, श्रावक-श्राविकाओं के लिए, और समस्त भविलोक के लिए यह उनका अपूर्व अनुदान-उपकार है। (१) भगवती शतक-३-६(५) में भगवान गौतम से कहते हैं "गौतम ! शरीर जीव से उत्पन्न होता है। इसमें जीव का उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरूषार्थ (पुरूषकार पराक्रम) ही निमित्त है।" . (२) श. १-२६- “गौतम ! लोक ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य है।" (३) श. ५-२६- “गौतम ! तथारूप श्रमण या माइन के पर्युपासक को उस की पर्युपासना का फल होता है श्रवण। श्रवण का फल ज्ञान, ज्ञान का फल विज्ञान, विज्ञान का फल प्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान का फल संयम, संयम का फल संवर, संवः का फल तप, तप का फल व्यवदान (निर्जरा), व्यवदान का फल अक्रिया, अक्रियां का (अंतिम) फल सिद्धि (निर्वाण) है।" (४) श. ३-११- "भगवन् ! क्या जीव सदा समित (मर्या दित) रूप से काँपता है ? एयति कंपित होता है? वेयति-विविध रूप से काँपता है? चलति गमनागमन करता है? फंदई-धीमी हलचल करता है ? घट्टई-सब दिशाओं में चलता है ? उदीरति-दूसरे पदार्थों को हिलाता है? तं तं भाव परिणमति ?-उत्प्रेक्षण, अवक्षेपण, आकुंचन, प्रसारण आदि उस उस भाव (क्रिया, पर्याय, परिणाम) को प्राप्त होता हैं ?" "हाँ गौतम! ऐसा ही होता है।" (५) श. ७-२-३६- "भगवन् ! जीव शाश्वत है या अशाश्वत ?" “गौतम ! जीव कथंचित् शाश्वत है, कथंचित् अशाधत।" "भगवन् यह किस कारण से कहा जाता है ?" "गौतम ! द्रव्य की दृष्टि से जीव शाश्वत् है। भाव (पर्याय) की दृष्टि से अशाश्वत्।" (६) श. १२-१०-१०- “गौतम ! आत्मा कदाचित् (सम्यक्) ज्ञान रूप है, कदाचित् अज्ञान रूप है। किन्तु ज्ञान तो नियम से आत्मस्वरूप है।" ‘णाणे पुण निसमं आया।' (७) श. १२-१०-१६- गोयमा ! आया (आत्मा) नियमं दसणे, दंसणे वि नियमं आया (आत्मा)।" (८) शतक-१५ में गौशालक द्वारा भगवान पर तेजोलेश्या छोडने का वर्णन व उनका वाद-विवाद वर्णित है। गौतमस्वामी द्वारा पूछने पर भगवान गौशालक का संपूर्ण पूर्व-वृत्तान्त उन्हें कह सुनाते हैं। [गोशालक के भव के बाद की बातें हैं, गोशालक के पूर्व के भव की आशातना और विपाक का वर्णन श्री महानिशीथ सूत्र में है।] (E) भगवतीसूत्र व औपपातिकसूत्र में गौतमस्वामी द्वारा अइंमुत्ता (अतिमुक्तककुमार) को DROOMORROWowowood
SR No.032491
Book TitleMahamani Chintamani Shree Guru Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year
Total Pages854
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size42 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy