SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 786
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६०] [ महामणि चिंतामणि पर अब हमें समर्पण की मांग करनी है। (७) हमने मान-इज्जत की प्रार्थना की हैलेकिन अब हमें विनय-नम्रता एवं सौजन्यशीलता की चाहना करनी है। (८) अभी तक हमने हमारे मनोरथों की सफलता की प्रार्थना की है। अब हम मांगते हैं कि हमें शुद्ध एवं वास्तविक संकल्प को सफल करने का सामर्थ्य मिले। (६) आज तक मैंने मांगा था कि मेरे समस्त स्वजन, परिवार मेरे पर प्यार बरसायें। आज से मैं कहूंगा कि मैं मेरे सारे स्वजनों का विश्वासपात्र बनूं । (१०) आज तक मैं चाहता था कि मेरे सारे नौकर, सेवकगण मेरी निरंतर सेवा करें। * आज से मेरा निर्णय होगा कि मैं मेरे नौकर-सेवकों के प्रत्येक प्रश्नों को हल करने में सफल बनूं। (११) आज तक मैं चाहता था कि गुरुजनों से मुझे चमत्कारिक वासक्षेप मिले। प्रभावशाली रक्षा पोटली (राखी) मिलें। मंत्रसिद्ध माला मिलें। अब चाहता हूं कि मुझे गुरुजनों से मोक्षमार्ग के आशिष मिले । चरित्रनिर्माण की सफल || प्रतिज्ञा (नियम) मिलें। आचारसिद्ध मंगलमय मार्गदर्शन मिलें। (१२) आज तक मैंने चाहा था कि मुझे परिश्रम कुछ भी करना न पड़े और शीघ्र ही | सिद्धि मिले। आज से मैं चाहूंगा कि मेरी साधना का प्रत्येक परिश्रम अखंड हो और सिद्धि पर्यंत मेरे || हृदय में कोई खेद न हो। (१३) आज तक मैंने चाहा था कि सब से पहले मेरी सिद्धि हो। आज से मेरी नम्र प्रार्थना है कि मेरे साथ में सभी की सिद्धि हो। प. पू. आ. श्री विजयराजयशसूरि म. सा. 6 、 SSSSSSSSS
SR No.032491
Book TitleMahamani Chintamani Shree Guru Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year
Total Pages854
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size42 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy