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________________ 69 जैन-विभूतियाँ 18. प्रवर्तिनी साध्वी विचक्षणश्री (1912-1980) जन्म : अमरावती, 1912 पिताश्री : मिश्रीमलजी मूथा माताश्री : रूपा देवी दीक्षा : 1924 पद : प्रवर्तिनी, 1967 दिवंगति : 1980 "जैन कोकिला'' के विरुद से सम्मानित विदुषी साध्वी विचक्षणश्री जी का जन्म ओसवाल श्रेष्ठि श्री मिश्रीमलजी मूथा की धर्मपत्नि रूपादेवी की कुक्षि से संवत् 1969 में हुआ। एक वर्ष पश्चात् ही पिता का देहांत हो गया। शोकाकुल परिवार में बड़ी होते-होते वैराग्य का बीज वपन हुआ। माता और पुत्री दोनों दीक्षित होने के लिए आतुर रहने लगी। दादाजी ने श्री पन्नालालजी मुणोत.से सगाई तय कर दी। यही समय परीक्षा का था। आपने ससुराल से आए गहने पहनने से इन्कार कर दिया। निम्बाज के ठाकर ने आपकी खूब कड़ी परीक्षा ली एवं खरी उतरने पर दादाजी को मनाया। संवत 1981 में आपकी दीक्षा बड़े आनन्द उत्साह से सम्पन्न हुई। आप महासती स्वर्ण श्री जी की शिष्या बनी। बड़ी दीक्षा के उपरांत महासती जतनश्री जी की शिष्या बनी। आप बड़ी निर्भीक प्रकृति की थी। साध्वी जी की साधना का मूल मन्त्र स्वाध्याय था। वे अपने दैनंदिन क्रियाकलाप में बड़ी सावधानी से और निरंतर खोजती थी शरीर में उस अशरीरी को जो साधना की अंतिम मंजिल है। श्रीमद् देवचन्दजी, योगीराज आनन्दघनजी एवं चिदानन्दजी का उनकी आराधना पर बड़ा प्रभाव था। भगवती एवं उत्तराध्ययन सूत्रों के कथन उनके जीवन में रूपायित होते थे। वे क्रान्तदृष्टा थी। साध्वीश्री को न कोई सम्पदा, न पन्थ, न गच्छ, न कोई पूर्वाग्रह धूमिल या आच्छादित कर सका। वे एक निधूम दीप-शिखा सी आठों याम प्रज्वलित रही और समाज के रूढ़, जीर्ण, जर्जर पंजर को रूपान्तरित करने में लगी रही।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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