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________________ जैन-विभूतियाँ 102. श्री राजरूप टांक (1905- 397 ) जन्म : चिड़ावा, 1905 पिताश्री : माणकचन्दजी ओसवाल (दत्तक-छगनलालजी टाक, श्रीमाल) दिवंगति : जयपुर के प्रसिद्ध रत्न पारखी श्रीमाल श्रेष्ठि श्री राजरूप जी टांक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से थे। लोगों में 'चा साब' के नाम से लोकप्रिय श्री टांक रत्न व्यवसाय में अग्रणी थे। आपका जन्म संवत् 1962 में चिड़ावा ग्राम में हुआ। आपके पिता श्री मानकचन्दजी का ओसवाल समाज में प्रमुख स्थान था। छ: वर्ष की उम्र में राजरूप जी श्री छगनमलजी टांक के गोद गए। आपके पूर्वज श्री सावंतराम जी ने झुंझुनूं में दादाबाड़ी एवं शेखावटी प्रदेश में प्यास बुझाने के लिए अनेक कुओं का निर्माण कराया था। राजरूप जी ने जवाहरात के पुश्तैनी व्यवसाय को खूब चमकाया। आपने जयपुर में हीरे एवं अन्य कीमती जवाहरात तराशने की फैक्ट्री स्थापित की। रंगीन पत्थरों-माणक एवं पन्ने के आप विशेषज्ञ माने जाते थे। अनेक जवाहरात कर्मियों को आपने प्रोत्साहन देकर व्यवसाय दक्ष बनाया। सन् 1970 में उनके शिष्यों द्वारा उन्हें चौसठ हजार रूपए का पर्स (थैली) भेंट कर सम्मानित किया गया। आपने जवाहरात पर 'इंडियन जेमोलोजी' (अंग्रेजी) व 'रत्न प्रकाश' (हिन्दी) ग्रंथों की रचना की। उनके संग्रह में अनेक प्रकार के प्राचीन अर्वाचीन विशिष्ट रत्न संग्रहित है। आप संस्कृत एवं आयुर्वेद के ज्ञाता थे। 'चा साब' में अपने देश के प्रति प्रगाढ़ प्रेम था। स्वतंत्रता संग्राम में उनका विशेष अवदान रहा। स्वभाव से सरल एवं मिलनसार तो थे ही, उनका पहनावा खादी का कुर्ता और धोती उन्हें जन-साधारण के और निकट ला देता था। आप संवत् 1995-96 में राज्य प्रजामंडल के
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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