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________________ 379 जैन- विभूतियाँ साम्प्रदायिकता की जड़ता की गंध कहीं भी नहीं थी, वह उनके हृदय की विशालता का बहुत बड़ा प्रमाण है। आचार्य साहेब के उत्कृष्ट निर्देशन में श्री शांतिलाल शेठ ने राजघाट के पास एवं विशेषत: हरिजन बस्ती में लोकसेवाकेन्द्र, हरिजन बालवाड़ी, अंबर - चरखा केन्द्र, बापू - बुनियादी शिक्षा निकेतन, विश्व- समन्वय केन्द्र, गांधी- विचार केन्द्र, गांधी - साहित्य भण्डार आदि अनेक प्रवृत्तियाँ संचालित की । Kingsway Camp में प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना करके वहाँ के हरिजन बच्चों के लिए उद्योग केन्द्र खोलकर उनके Lodging और Boarding के संचालन का कार्य उन्होंने खुद संभाला। बापू - बुनियादी शिक्षा निकेतन, श्रम साधना-केन्द्र एवं जैन- कॉन्फ्रेंस के मंत्री, 'जैन - प्रकाश' के मंत्री, भगवान महावीर 25वीं निर्वाण शताब्दी, राष्ट्रीय समिति के एक मंत्री, मोस्को में विश्व शांति - परिषद् के जैन• प्रतिनिधि आदि राष्ट्रीय, सामाजिक एवं धार्मिक-सेवा कार्यों के समुच्चय ने ही उन्हें इस सन्मान के योग्य बनाया । 1967 में मास्को में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय विश्व-शांति - परिषद् में, जैन- प्रतिनिधि के रूप में गये और जैन - सिद्धांतों के अनुरूप 'युनिवर्सल को एक्जिस्टेंस' पर जो निबंध पढ़ा वह बहुत सराहा गया। भगवान महावीर के 2500वें निर्वाण महोत्सव के विभिन्न कार्यक्रमों में आपकी अहम् भूमिका रही एवं तब उन्हें 'विशिष्ट - समाज सेवी' की पदवी दी गई। - - 1986 में उनकी यात्रा दक्षिण भारत की ओर बढ़ी। बेंगलौर में स्थिरवास करने का निर्णय होते ही उन्होंने अपने जैनधर्म के प्रचार और शिक्षण का कार्यक्षेत्र वहाँ फैला दिया। बैंगलोर में उन्होंने 'सन्मति - स्वाध्याय पीठ' की स्थापना की । वहाँ भी उन्होंने मद्रास, मैसूर, धर्मस्थल, मूडबिद्री, बिजापुर, श्रवणबेलगोला आदि छोटे-छोटे गाँवों की बहुत यात्राएँ की, वहाँ भी अपने सचोट मंतव्यों से लोगों को प्रभावित किया । उनकी प्रेरणा से मैसूर जैन संघ ने प्राकृत व जैनोलोजी पर एक सम्मेलन का आयोजन किया। उनकी अंतर्भावना थी कि जिन संस्था ने उनके जीवन में "जैनत्व" के संस्कारों का सिंचन किया, ऐसी कोई जैन प्रशिक्षण देने वाली 'प्राकृत - विद्यापीठ' की स्थापना हो और सर्वहितंकर सर्वोपयोगी सन्मति साहित्य का संपादन एवं प्रकाशन हो ।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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