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________________ 366 जैन-विभूतियाँ पत्रिका प्रकाशित की एवं वर्षों इसका कुशल सम्पादन किया। महिलोपयोगी अनेक पुस्तकों का सृजन किया। वे जैन धर्म के उज्ज्वल प्रकाश से विश्व को आलोकित करने के लिए सदा तत्पर रहती थी। सन् 1948 में "सर्चलाईट'' नामक पत्र में जॉर्ज बर्नार्डशा की जैन धर्म रुचि विषयक संवाद छपा। वे जैनमत के सिद्धांतों एवं गांधीजी द्वारा प्रतिपादित अहिंसा के विवेचन के प्रति उत्सुक थे। उन्होंने गाँधीजी के पुत्र श्री देवदास गाँधी से इस कार्य हेतु सम्पर्क किया था। जैसे ही चंदाबाई ने यह संवाद पढ़ा, उन्होंने सेठ सर हुकमचन्द, सेठ भागचन्द सोनी एवं साहू शांतिप्रसाद को खत लिखकर एक जैन विद्वान् जॉर्ज बर्नार्डशा के निर्देशन हेतु विदेश भेजने की प्रेरणा दी। तप:पूत चंदाबाई का मानस करुणा से ओत-प्रोत था। वनिता आश्रम के विद्यार्थियों पर उनका अपार प्रेम था। वे उनके रोग-शोक में 'माँ' की भाँति सदा शरीक रहती थी। अपने स्वास्थ्य की परवाह किए बिना वे सदा उनकी सेवा में तत्पर रहती। सन् 1942 में त्रिकाल सामायिक, पूजन के साथ संस्थाओं के कार्यभार एवं अत्यधिक परिश्रम करने से वे स्वयं रुग्ण रहने लगी। डॉक्टरों ने बलवर्धक इंजेक्शन तजबीज किए। पर वे किसी भी तरह राजी नहीं हुई। उनकी आत्मशक्ति एवं जागृति अभूतपूर्व थी। जैन संस्कृति की वे मूर्तिमंत प्रतीक थी। राजभोगों से महाभिनिष्क्रमण कर त्याग का कंटकाकीर्ण पथ उन्होंने स्वयं चुना था। अहिंसा और सत्य की साधना करते हुए उन्होंने वृद्धावस्था में प्रवेश किया एवं सन् 1977 में एक दिन शांतिपूर्वक स्वर्गारोहण किया।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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