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________________ जैन- विभूतियाँ 93. सुश्री चन्दाबाई आरा (1889 - 1977 ) 364 जन्म : वृन्दावन, 1889 पिताश्री : नारायणदास अग्रवाल (वैष्णव ) माताश्री : राधिका देवी दिवंगति : आरा, 1977 बीसवीं शदी का प्रारम्भ भारत के सांस्कृतिक महाकाश का कृष्ण पक्ष था । निरक्षरता एवं अंधविश्वासों की तमिस्रा से समाज विकास अवरुद्ध हो रहा था। समस्त नारी समाज रूढ़िग्रस्त था, कन्या माँ-बाप के लिए एक बोझ थी, एक निरीह पशु की तरह उसका शोषण हो रहा था और तभी राजा राममोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर और रामकृष्ण परमहंस जैसे ज्ञान सूर्यों का उदय हुआ। ऐसे ही समय एक महिमामयी नारी की मूक साधना एवं लोक-कल्याणकारी सेवा से समाज धन्य हुआ। वह विभूति थीं ब्रह्मचारिणी पंडिता चन्दाबाई | चन्दाबाई का जन्म वृन्दावन के एक सम्भ्रान्त अग्रवाल वैष्णव परिवार में सन् 1887 में हुआ। पिताश्री नारायणदास एवं माता श्रीमती राधिका देवी की लाडली पुत्री का बचपन राधाकृष्ण की रसमयी भक्तिधारा में अवगाहन करते बीता। सौन्दर्य और दिव्य ओज तो वह भगवान से लेकर पैदा हुई थी। माँ से श्रद्धा और पिता से कर्मठता बच्ची को उपहार में मिले थे। तत्कालीन सामाजिक रीत्यानुसार मात्र 11 वर्ष की उम्र में उसका विवाह सुप्रसिद्ध गोयल गोत्रीय रईस खानदान में पण्डित प्रभुदासजी के पौत्र एवं चन्द्रकुमारजी के कनिष्ठ पुत्र श्री धर्मकुमार से हुआ। वे जैन धर्मावलम्बी थे। सभी खुश थे। पर होनी को कुछ और ही मंजूर था। एक वर्ष बाद ही धर्मकुमार का स्वर्गवास हो गया और मात्र 12 वर्ष की उम्र में चन्दा बाई सौभाग्य सुख से सदा के लिए वंचित हो गई । धर्मकुमार के अग्रज श्री देवकुमार, छोटे भाई की अकाल मृत्यु से चन्दाबाई पर आई इस विपत्ति से अत्यंत व्यथित थे । देवकुमारजी धर्मनिष्ठ,
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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