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________________ 354 जैन-विभूतियाँ 90. सेठ अचलसिंह (1895-1983) जन्म : आगरा, 1895 पिताश्री : पीतमल चोरड़िया (सेठ सवाईराम बोहरा के दत्तक आये) दिवंगति : 1983 जन्म उनका सार्थक होता है, जिनका जीवन अर्थवान हो । सेठ अचलसिंह के व्यक्तित्व में एक महापुरुष की कल्पना चरितार्थ हुई। अत्यंत सज्जनता, सहृदयता, निरभिमानता, विनम्रता, पर-दु:ख-कातरता, कर्तव्य परायणता, अनुशासन प्रियता, मित भाषिता आदि गुणों का संगम उनके व्यक्तित्व को भव्यता प्रदान करता था। विशाल देहयष्टि, शिशु सरीखी भोली आकृति, शुभस्मिति उनकी शख्सियत के अभिन्न अंग थे। बीसवीं शदी के लोकप्रिय राष्ट्रीय एवं आंचलिक जैन कर्णधारों में वे अग्रगण्य थे। उन्होंने यह लोकप्रियता अपनी भाषण-पटुता के बल पर नहीं, अपितु कार्यक्षमता एवं कर्मठता के बल पर अर्जित की थी। आज के युग में जब राजनीति सत्ता की अनुगामिनी और कुर्सियों की उठा-पटक का पर्याय बन चुकी है सेठजी इस दलदल से कोसों दूर रहे। आगरा की जनता ने उन्हें बेहद प्यार एवं सम्मान दिया एवं बार-बार धारा सभा एवं लोकसभा के लिए चुना। आज ऐसे महाजन दुर्लभ हैं जिनमें धर्म के सभी तत्त्वों का समावेश हो । सेठजी के व्यक्तित्व में मन, वचन और कर्म की एकरूपता थी। वे आर्थिक दृष्टि से ही महाजन नहीं थे, अपितु धार्मिक एवं नैतिक दृष्टि से भी असल में महाजन थे। सेठ अचलसिंह का जन्म 5 मई, सन् 1895 के दिन आगरा नगर के एक समृद्ध एवं प्रतिष्ठित जैन ओसवाल बोहरा गोत्रीय धर्म प्रेमी परिवार में हुआ। आगरा के सेठ सवाईरामजी बोहरा की समाज में प्रतिष्ठा थी पर उनके कोई पुत्र न था। उन्होंने आगरा के ही पीतमल चोरड़िया को दत्तक लिया।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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