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________________ 352 जैन-विभूतियाँ 89. सेठ आनन्दराज सुराणा (1891-1980) जन्म : जोधपुर, 1891 पिताश्री : चांदमल सुराणा पद/उपाधि : प्राणीमित्र (1970), (1971), समाज भूषण, (1972) दिवंगति : 1980 '000 आपका जन्म जोधपुर में सन् 1891 में हुआ। आपको अहिंसा एवं आध्यात्म से लगाव पैतृक विरासत में मिला। आपके पिता सेठ श्री चांदमल सुराणा सार्वजनिक हित के कामों में सदैव तत्पर रहते थे। वे जोधपुर पिंजरापोल के संरक्षक थे। श्री आनन्दराजजी जब 32 वर्ष के थे तभी राष्ट्रीय आन्दोलन में कूद पड़े। बीकानेर महाराज ने आपको राज्य से निर्वासित कर दिया। जोधपुर का सामन्ती शासन भी उन्हें बर्दास्त न कर सका। आपने लोक परिषद् की स्थापना एवं सन् 42 के भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया। अनेक बार जेल की यातनाएं सही। आप दिल्ली धारा सभा के सन् 1952-57 तक सदस्य रहे। आपने निजी कारोबार शुरु किया। छापेखाने की मशीनों के आयात एवं निर्माण का बहुत बड़ा औद्योगिक प्रतिष्ठान आपके ही अध्यवसाय का फल था। साथ ही, रासायनिक उद्योग में भी आपने भाग्य आजमाया एवं समृद्धि हासिल की। आप देश की अनेक समाजसेवी संस्थाओं से जुड़े रहे, जिनमें मुख्य हैं-बम्बई की ह्यूमेनीटेरियन लीग, गीता शिशु विहार, भारतीय शाकाहार कॉन्फ्रेंस, भारत गो-सेवक संघ, विश्व अहिंसा संघ आदि। सुराणा विश्वबंधु ट्रस्ट के आप संस्थापक ट्रस्टी थे। आपके हृदय में जानवरों एवं प्रकृति के प्रति बहुत प्रेम था। लोगों का जानवरों के प्रति क्रूर व्यवहार देखकर आपका मन सदा दु:खी रहता था। आपने उनके विरुद्ध जिहाद छेड़ दिया। जोधपुर राजमहल में लाखों पशुओं को कत्ल से बचाने के लिए सत्याग्रह किया।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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