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________________ 325 जैन-विभूतियाँ 80. सेठ चेनरूप सम्पतराम दूगड़ सेठ सम्परामजी दूगड़ जन्म : सरदारशहर, 1866 पिताश्री : चैनरूपजी दूगड़ दिवंगति : 1928 (सेठ सम्पतरामजी दूगड़) सरदार शहर का चैनरूप सम्पतराम दूगड़ का खानदान ओसवाल समाज में नैतिक मूल्यों का प्रतिस्थापक माना जाता है। वहाँ से 40 किलोमीटर दूर तोल्यासर नामक गाँव का एक बालक "चैना'' सरदारशहर आकर मजदूरी करने लगा। एक दिन विलम्ब से आने पर मिस्त्री ने क्रोध में बालक के सर पर करणी दे मारी। स्वाभिमानी बालक ने अपना ही व्यवसाय करने का संकल्प लिया। सन् 1814 में साढ़े तीन मास की कठिन यात्रा कर चैनरूपजी कलकत्ता गए। अपने अध्यवसाय से कपड़े का व्यापार स्थापित किया एवं चन्द वर्षों में प्रमुख व्यापारियों की कोटि में गिने जाने लगे। विदेशों से कपड़ा आयात करने वाले वे पहले व्यापारी थे। सन् 1893 में आपका स्वर्गवास हुआ। इनके पुत्र सेठ सम्परामजी अपनी बात के धनी एवं बड़े ईमानदार व्यक्ति थे। बीकानेर के महाराजा गंगासिंह जी की उन पर विशेष कृपा थी। ये राजघराने के प्रमुख साहूकार थे। गंग नहर परियोजना एवं रतनगढ़ से सरदारशहर तक रेलवे लाईन बिछाने के लिए सेठ सम्पतरामजी ने विशाल धनराशि ब्याज मुक्त ऋण के रूप में राज्य को दी। राज्य की तरफ से उन्हें अनेक सुविधाएँ व बख्शीशें प्राप्त हुईं। महारजा शार्दूलसिंह ने भी उन्हें अनेक सम्मान बख्शे-सिरोपांव, सिंहासन के निकट बैठने का अधिकार, रुक्के, ताजीम (आभूषण), अदालतों में हाजिर होने से मुआफी, जकात-तलाशी
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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