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________________ 320 जैन-विभूतियाँ अगरचन्दजी के पास बम्बई में रहकर व्यावसायिक ज्ञान प्राप्त किया। साथ ही अंग्रेजी, गुजराती आदि भाषाएँ भी सीखी। सन् 1891 में आप कलकत्ते चले गये और वहाँ मनिहारी तथा रंग की दुकान खोली एवं गोली सूता का कारखाना प्रारम्भ किया। अपने अध्यवसाय, परिश्रमशीलता, नम्रता, वचन की दृढ़ता, स्वभाव माधुर्य, सूझ-बूझ एवं व्यापारिक ज्ञान की बदौलत आपका व्यापार चमक उठा। क्रमश: आपने प्रयास करके बोल्जियम, स्विट्जरलैंड, बर्लिन आदि के रंग के कारखानों की तथा गॉब्लॉज आस्ट्रिया के मनिहारी कारखानों की सोल एजेंसियाँ प्राप्त कर लीं। फलत: आपका कार्यक्षेत्र विस्तृत हो गया। आपने ‘ए.सी.बी. सेठिया एण्ड कम्पनी' नामक फर्म स्थापित की। दक्ष तथा योग्य कर्मचारियों एवं अपनी प्रतिभा से व्यवसाय निरन्तर वृद्धिगत रहा। अपने व्यवसाय को नवीन आयाम देने हेतु आपने रंग व रसायन क्षेत्र में प्रवेश किया और हावड़ा में 'दी सेठिया कलर एण्ड केमिकल वर्क्स लिमिटेड' नामक रंग का कारखाना खोला, जो भारतवर्ष में रंग का सर्वप्रथम कारखाना था। आप इसके मैनेजिंग डायरेक्टर थे। कारखाने में निर्मित माल की खपत के लिए आपने भारत के प्रमुख नगरों-कलकत्ता, बम्बई, मद्रास, करांची, कानपुर, दिल्ली, अमृतसर, अहमदाबाद में अपनी फर्म की शाखाएँ खोलीं। साथ ही जापान के औसाका नगर में भी आपने ऑफिस खोला और अनेक ट्रैवलिंग एजेन्ट नियुक्त किये, जिससे अधिकाधिक ऑर्डर मिल सकें। । सन् 1914 के प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान भावों में आशातीत वृद्धि हो जाने से आपने रंग के कारखाने में अप्रत्याशित लाभ हआ। चूँकि आपने श्रावक व्रतों को धारण कर चल-अचल सम्पत्ति की मर्यादा कर रखी थी अत: निर्धारित सीमा से वृद्धि होने पर आपने व्यवसाय से निवृत्त होना प्रारम्भ कर दिया। प्रभूत अर्थोपार्जन के पश्चात् आपने समाज-सेवा क्षेत्र में प्रवेश किया। आपने बीकानेर में सन् 1913 में धार्मिक पाठशाला, कन्या पाठशाला, सेठिया प्रिन्टिंग प्रेस, सेठिया जैन ग्रन्थालय आदि खोलकर शिक्षा-प्रसार, नैतिक संस्कार जागरण एवं समाज सेवा का सूत्रपात किया। समाज में शिक्षा
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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