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________________ जैन - विभूतियाँ चर्चित रहे हैं। अपने जीवन काल में हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में जो महत्त्वपूर्ण ग्रंथ लिखे वे बहुत लोकप्रिय हुए, जैसे- महाराणी चेलणा, सत्यमार्ग, जैन वीरांगनाएँ, दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि पतितोद्धारक जैन धर्म, Religion of Tirthankers, Some historical Jain Kings and Heroes आदि । सन् 1964 में प्रकाशित Religion of Tirthankers नामक 514 पृष्ठों का विशाल ग्रंथ बाबूजी की अंतिम मूल्यवान भेंट थी जैन समाज को । 292 सन् 1923 से लगातार 30 वर्ष तक कामताप्रसादजी ने "वीर" पत्रिका का सम्पादन किया। बाबूजी 'सुदर्शन' (एटा) से लेकर "जैन सिद्धान्त भास्कर" ( आरा, बिहार) तक अनेक साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक तथा त्रैमासिक पत्रिकाओं के मानद सम्पादक भी रहे हैं। आपने 'अहिंसावाणी' तथा 'दी वॉइस ऑफ अहिंसा' (मासिक) के संस्थापक सम्पादक के रूप में अनेक विशेषांक निकाल कर देश-विदेश में ख्याति अर्जित की है। ये सभी विशेषांक आज भी सन्दर्भ गन्थों के रूप में अपना महत्त्व रखते हैं । सम्पादक के रूप में आपने अनेक भाई-बहिनों को लेखक बना दिया है। इन सभी लेखकों ने अहिंसा, शाकाहार तथा सदाचार पर प्रभूत लेखन कर समाज में धार्मिक वातावरण बनाया है। बाबूजी ने अखिल विश्व जैन मिशन की स्थापना कर देश-विदेश में जैन धर्म और संस्कृति के प्रचार- प्रसार में पहल की। आपके लेखकीय प्रभाव से अनेक विदेशी बन्धुओं ने जैनधर्म स्वीकार किया। मिशन की विभिन्न प्रवृत्तियों के संचालन हेतु कामताप्रसादजी ने हजारों रुपए खर्च किये निर्धन एवं अनाथ विद्यार्थियों की सहायता की। आप अपनी न्यायप्रियता तथा प्रशासन पटुता के लिए अनेक बार प्रशंसित और पुरस्कृत भी हुए हैं। बाबूजी ने अनेक पुरस्कार एवं स्वर्ण तथा रजत पदक प्राप्त किये। आपको करांची (पाकिस्तान में ) में बेरिस्टर सम्पतराय द्वारा स्थापित "जैन एकेडमी" से सन् 1942 में डॉक्टर ऑफ लॉ, कनाडा से ईसाई अंतर्राष्ट्रीय शिक्षण संस्थान द्वारा सर्वे धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन के लिए पी-एच. डी., बनारस से संस्कृत साहित्य
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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