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________________ जैन-विभूतियाँ पात्रों में सटीक निर्माण हुआ है। परख में वे एक विधवा को प्रणय एवं परिणय की छूट देते हैं, 'सुनीता' (चित्रपट धारावाहिक) में पति द्वारा पर-पुरुष के जीवन में समरसता का संचार करने का आग्रह है । त्यागपत्र की मृणाल का अपनी रूचि के प्रतिकूल पड़ने वाले पति से विमुख होना विवाह-पूर्व के प्रेमी पर सर्वस्व न्यौछावर करने की कामना है। इसी तरह कल्याणी, सुखदा (धर्मयुग में धारावाहिक), विवर्त्त ( हिन्दुस्तान में धारावाहिक) की नायिकाएँ अनमेल विचारों के दाम्पत्य से मुक्ति चाहती हैं। जैनेन्द्रजी पर अक्सर अनैतिकता पर आरोप लगा । असल में यह समाज के स्वीकृत मूल्यों के प्रति विद्रोह और व्यक्ति स्वातन्त्र्य की प्रस्थापना है। उनकी अंतिम कृति 'दशार्क' कालजयी कृति है, कथ्य एवं शिल्प का उत्कर्ष चरम पर पहुंचा है। इसमें 'वेश्या' के शाश्वत प्रश्न की चुनौती को लेखक ने भोगोपभोग के दृष्टिकोण से नहीं वरन् गहरे समाजवैज्ञानिक दृष्टि से प्रस्तुत किया है। जैनेन्द्र ने नारी को सदा वन्दनीया दिखाया, उसके नख-शिख वर्णन में उनकी किंचित् रुचि नहीं है। जैनेंन्द्र के पात्र दैहिकता से अधिक मानसिकता में जीते हैं। लगभग 25-30 वर्षों के लेखन के दरम्यान उनके 12 उपन्यास, 10 कहानी संग्रह, 1 अनुवाद ग्रंथ एवं 5 268 I "समय और हम' (निबंध) में जैनेन्द्रजी के तत्त्व दर्शन की प्रगल्भता, हृदय का सौहार्द्र, वस्तुनिष्ठा तथा वैज्ञानिकता का प्रत्यय एकसाथ प्रकट हुआ है। आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक समस्याओं का मूलगामी विवेचन हैं । ग्रंथ को हिन्दी साहित्य के ‘‘मंगलाप्रसाद परितोषिक" के लिए चुना गया। उनके विचार गाँधीजी के अहिंसा और सत्य दर्शन से प्रभावित जरूर थे पर उनके संयम और आत्मशुद्धि तत्त्वों को जैनेन्द्रजी ने निषेधात्मक मानकर स्वीकार कभी नहीं किया । पंजाब जेल में एक समय सभी बड़े नेता बन्द थे, जैनेन्द्र भी । वहाँ गोष्ठियाँ होती थी। एक बार आसफअली भी गोष्ठी में आए, कहने लगे‘“राजनीति करने वाले बहुत हैं पर गहरे सोच वाले नहीं । जैनेन्द्र को तो —
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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