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________________ जैन- विभूतियाँ में अध्ययन या अध्यापन करते थे वे चाहे बर्लिन में हों या टोकियो में, रोम में हों या न्यूयार्क में सब गणेश ललवानी के नाम से परिचित हैं। इसका कारण है इनके द्वारा सम्पादित अंग्रेजी त्रैमासिक 'जैन जर्नल' । एक उत्कृष्ट परिच्छन्न पत्र । 1966 में इसका प्रकाशन प्रारम्भ हुआ । अंग्रेजी भाषा में जैनालोजी पर केवल भारत में ही नहीं शायद विश्व में भी उस समय यह एकमात्र पत्र था । मात्र एक धर्म से सम्बन्धित पत्र कितना उत्कृष्ट हो सकता है, यह तो इसके किसी भी एक अंक को पढ़ने से ही ज्ञात हो जाएगा । 247 श्री ललवानी जी केवल एक इसी पत्र के सम्पादक नहीं थे। इसके अतिरिक्त और दो पत्रों का भी सम्पादन आपने शुरू किया, उसमें एक था - बंगला भाषा का 'श्रमण', दूसरा था हिन्दी का - ' तित्थयर' । श्रमण मासिक का प्रकाशन 1963 से प्रारम्भ हुआ। बंगला भाषा में जैनधर्म, दर्शन, साहित्य और कला सम्बन्धी यह भी एकमात्र पत्र है । बंगाली इतने दिनों तक बौद्ध धर्म की ही चर्चा करते थे, जैन धर्म की नहीं । किन्तु अब उनकी दृष्टि जैन धर्म की ओर भी आकृष्ट हुई। यह श्रमण की ही देन है। हिन्दी पत्र तित्थयर का प्रकाशन शुरु हुआ - 1977 में। अनेक जैन पत्र-पत्रिकाएँ हिन्दी में प्रकाशित होती हैं किन्तु तित्थयर का व्यक्तित्व एवं वैशिष्ट्य विद्वत् वर्ग को प्रिय है। इसके सम्पादन में इन्हें श्रीमती राजकुमारी बैंगानी सहयोग देती थी। श्रीमती बैंगानी ने गणेश ललवानी की कहानियाँ, नाटक, प्रबन्धादि का हिन्दी में रूपान्तर कर ललवानी - साहित्य हिन्दी भाषा भाषियों को परिचित करवा दिया है। - आपके प्रकाशित साहित्य " 1. 'सातटि जैन तीर्थ'' (1963) ग्रन्थ में सात प्रमुख जैन तीर्थों का विशद् वर्णन है । 2. ‘“अतिमुक्त” (1972) बंगला पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित जैन कहानियों का संकलन है। इस पुस्तक को पढ़कर प्रमुख भाषाविद् डॉ. सुनीति कुमार चट्टोपाध्याय ने उद्बुद्ध होकर लेखक को एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने आपकी भाषा शैली की उच्छ्वसित प्रशंसा की एवं
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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