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________________ 242 जैन-विभूतियाँ देने से दोनों का सम्बन्ध विच्छेद कर देह के कष्टों से अपने आप उभरा जा सकता है। आपने "तन में व्याधि मन में समाधि' की उक्ति को अपने आचरण में ला अपनी सहनशीलता व शरीर से आत्मा की भिन्नता पर अपनी दृढ़ आस्था का परिचय दिया। ___ 11 फरवरी, 2002 को प्रात:काल आपने प्रथम बार कहा- ''मैं बहुत थक गया हूँ, देर हो रही है, अब मुझे जाना है।'' सदैव की भाँति उस दिन भी धार्मिक स्तोत्र, स्तवन आदि का श्रवण बड़े ध्यान पूर्वक किया। अंतिम समय तक वे पूर्ण चेतन अवस्था में थे। अंत समय के दस मिनट पूर्व आप पूर्ण ध्यानावस्था में चले गए व भौतिक देह का त्याग दिव्य शान्तिपूर्ण अवस्था में सायं 4.10 बजे कर दिया। उनके स्वर्गवास से जैन समाज की ही नहीं, अपितु भारतीय वाङ्मय एवं मनीषा की अपूरणीय क्षति हुई है। श्री नाहटा की प्रकाशित रचनाएँ1. सती मृगावती, 2. राजगृह, 3. समय सुन्दर रासपंचक, 4. हम्मीरायण, 5. उदारता अपनाइये, 6. पद्मिनी चरित्र चौपाई, 7. सीताराम चरित्र, 8. विनयचन्द्र कृति कुसुमांजलि, 9. जीवदया प्रकरण काव्यत्रयी, 10. सहजानंद संकीर्तन, 11. बानगी, 12. महातीर्थ पावापुरी, 13. श्री जैन श्वे. पंचायती मन्दिर सार्द्ध शताब्दी स्मृति ग्रन्थ, 14. श्री जिनदत्तसूरि सेवा संघ स्मारिका (अमरावती), 15. श्री जिनदत्तसूरि सेवा संघ स्मारिका (बीलाड़ा), 16. नालन्दा (कुण्डलपुर), 17. चम्पापुरी, 18. वाराणसी, 19. कांपिल्यपुर, 20. अहिच्छत्रा, 21. विविध तीर्थकल्प, 22. जैन कथा संचय, भाग-1 व2, 23. द्रव्य परीक्षा, 24. तरंगवती, 25. सहजानन्द सुधा, 26. सती मृगावती रास सार, 27. युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि चरित्रम्, 28. चार प्रत्येक बुद्ध, 29. क्षणिकाएँ, 30. श्री सहजानंदघन पत्रावली, 31. निन्हववाद, 32. जैसलमेर के कलापूर्ण जैन मन्दिर, 33. कलकत्ते का कार्तिक महोत्सव, 34. विचार रत्नसार, 35. अनुभूति की आवाज, 36. आत्मसिद्धि, 37. आत्मद्रष्टा मातुश्री धनदेवीजी, 38. नगरकोट कांगड़ा-महातीर्थ, 39. शाम्ब प्रद्युम्न कथा,
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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