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________________ जैन- विभूतियाँ के समापान समारोह की अध्यक्षता करने वाले विद्वान् स्थानीय नगरपालिका के अध्यक्ष ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि "तीन दिनों तक विद्वानों की जिज्ञासाओं का समाधान कर श्री नाहटाजी ने यह प्रमाणित किया कि मारवाड़ी श्रेष्ठी व्यापार में ही नहीं साहित्य क्षेत्र में भी अग्रणी हैं। सिर पर पगड़ी, टोपी या हैट देखकर किसी की विद्वता का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, उसके नीचे जो खोपड़ी है उसके ज्ञान भण्डार को उसके मुखारविन्द से सुनकर ही आंका जा सकता है। जब तक नाहटाजी को सुन नहीं लिया तब तक उनकी सादगी के कारण उनकी विद्वता का हम अन्दाजा नहीं लगा पाये ।" 240 नाहटाजी अपने चाचा श्री अगरचन्दजी के हमउम्र थे परन्तु उनके प्रति पूज्य भावना जीवनपर्यन्त रही। सरल स्वभावी एवं विनम्र श्री नाहटाजी ने नाम व्यामोह से विमुख रह ऐसी अनेक पुस्तकों का सम्पादन किया जिसमें चाचाजी के नाम के साथ अपना नाम जोड़ा तक नहीं । देव गुरु धर्म के प्रति पूर्ण समर्पित नाहटाजी ने भगवान महावीर पर चंडकौशिक द्वारा दिये उपसर्ग स्थल की खोज कर जोगी पहाड़ी पर तीर्थ की पुनर्स्थापना कराई। नाहटाजी ने अनेक बार अपनी भावना की अभिव्यक्ति चित्र अंकित कर भी की। गद्य, पद्य व विभिन्न पुरातन व वर्तमान भाषाओं के माध्यम से भावना अभिव्यक्ति की उनकी कृति ' क्षणिकाएँ' काफी चर्चित रही व श्रेष्ठकृति के रूप में पुरस्कृत भी हुई। शोधपरक, उपदेशात्मक, प्रेरणात्मक, गम्भीर, हल्की-फुल्की हंसी मजाक युक्त, व्यंग्यपरक तथ्यों को किसी भी माध्यम से प्रकट करने की अपूर्व क्षमता उनमें थी । 20वीं शताब्दी के उच्चतम अध्यात्मयोगी युगप्रधान गुरुदेव श्री सहजानंदघनजी महाराज आपके विशेष श्रद्धास्पद थे। लगातार कई-कई महीनों तक आपने उनके साथ रहकर तथा भ्रमणकर अपने ज्ञान में अभिवृद्धि की । गुरुदेव पर आपने अपभ्रंश भाषा में उनका जीवन चरित्र लिखकर एवं उसका हिन्दी अनुवाद कर एक संकल्प पूर्ण किया। कलकत्ता
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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