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________________ जैन- विभूतियाँ वे अन्य लोगों को जैन नहीं बना सके। वे पाश्चात्य देशों में जैन साहित्य एवं श्रमण भेजकर अपेक्षा रखते हैं कि वे ही उन जैन सिद्धांतों को अपनाकर विश्व की समस्याएँ हल करें। हालाँकि स्वयं ये तथाकथित जैन अपनी समस्याओं का हल निकालने में अक्षम हैं । अन्तरिक्ष, पावापुरी, राजगृह, केसरियाजी, सम्मेद शिखरजी, मक्षी आदि तीर्थों में श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदाय वर्षों से आपस में झगड़ रहे हैं। इस निष्प्रयोजन कलह में लाखों-करोड़ों रुपए व्यय हो चुके हैं। वे अन्य सम्प्रदाय की तत्त्व सम्बंधी महत्त्वहीन भिन्नताओं के लिए एक-दूसरे की टांग खींचने में लगे हैं और इसे हवा देते हैं अन्य _श्रद्धालु भक्त और प्रशस्ति पिपासु धन्ना सेठ ।” 204 डॉ. शार्लोटे जैन समाज की इस स्थिति से दुःखित थी। उन्होंने सुधारक वर्ग के सोच की सराहना भी की परन्तु यह वर्ग भी वांछित साहस के अभाव में कोई बदलाव लाने में असमर्थ था । लेख के अंत में उन्होंने अपने मन की भावना व्यक्त की कि ऐसा समय कब आएगा जब समस्त जैन समुदाय इन विकार ग्रस्त क्रियाकलापों से मुक्त, अंधश्रद्धा और संकुचित मनोवृत्तियों से ऊपर उठकर जिन उपदिष्ट प्राचीनतम धर्म का अनुगमन कर आत्म-कल्याण करेगा। किंतु जैन धर्म और समाज की इस अमूल्य सेवा के एवज में जैसा सूलक जैन धर्मावलंबियों ने डॉ. शार्लोटे क्राउने के साथ De CHARLOTTE KRAUSE उनकी वृद्धावस्था में किया वह अशोभनीय था। सिंधिया सरकार की सेवा से निवृत्त होकर उन्हें आश्रय ढूँढ़ना पड़ा। उन्हें आशा थी कि जैन
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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