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________________ जैन- विभूतियाँ जिस रूप से वे दिगम्बर आम्नायी उपासकों द्वारा पूज्य नहीं थे । अतः फाटक और सिपाहियों के निवासस्थान बनाने को रोकने और अपूज्य चरणों को हटाकर पूजा योग्य चरण चिह्न स्थापित किये जाने के वास्ते दिगम्बर समाज की ओर से हजारीबाग के सबजज की कचहरी में 4 अक्टूबर, 1920 को ऑडर्र 8, रूल 1 के अनुसार नालिश दाखिल की गई। 193 उभय पक्ष की बहस 18 दिन तक चली और 26 मार्च, 1.924 को दिगम्बरों का दावा खर्चे समेत डिगरी हुआ। उस निर्णय की अपील पटना हाईकोर्ट में हुई। श्री चरण चिह्न के विषय में दिगम्बरों की जीत हुई और अन्य विषयों पर श्वेताम्बरी समाज की जीत हुई । (ग) श्री राजगृह केस - राजगृह केस में पारस्परिक समझौता होकर सुलह नामा कचहरी में दाखिल हो गया। दोनों आम्नायों ने आपस में टकें बाँट ली। (घ) पावापुरी केस - पावापुरी में तालाब के बीच में एक रमणीक मन्दिर है । उसमें भगवान के चरण चिह्न हैं । चरण चिह्नों के आगे श्वेताम्बरियों ने महावीर स्वामी की प्रतिमा स्थापित कर रखी है। दिगम्बरी पूजा करते समय प्रतिमा को हटा देते थे। इस पर केस चलता रहा । पटना के सबजज की कचहरी में दिगम्बर आम्नाय की जीत हुई। अपील में हाईकोर्ट से भी वे जीते। किन्तु लन्दन में प्रीवी काउन्सिल में अपील की पेशी की खबर श्री चम्पतराय जी को, जो उस समय लंदन में ही थे, नहीं मिली । दिगम्बरियों के बैरिस्टर की नासमझी के कारण उनकी हार हो गई। स्वर्गीय कुमार देवेन्द्र प्रसाद जी ने 1915 में आध्यात्मिक ग्रंथों के प्रकाशनार्थ आरा में "सेन्ट्रल जैन पब्लिशिंग हाउस' नामक संस्था की स्थापना की । उसी ख्याति प्राप्त संस्था का स्थान परिवर्तन ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद जी के परामर्श और इन्दौर हाईकोर्ट के जज जुगमन्दरलाल जैनी की आर्थिक सहायता से, अजिताश्रम लखनऊ में कर दिया गया। सेन्ट्रल जैन पब्लिशिंग हाउस ने तेरह जैन शास्त्रों का अंग्रेजी में अनुवाद, भाष्य, उपोद्घात और प्राक्कथन छपवाया। ये तेरह प्रकाशन है - द्रव्य
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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