SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 183 जैन-विभूतियों 46. पं. नाथूराम प्रेमी (1881-1959) O URISTINATH जन्म : देवरी ग्राम (मध्यप्रदेश), 1881 पिताश्री. : टूंडेलाल मोदी (पोरवाड़) सृजन : हिन्दी ग्रंथ रत्नाकर दिवंगति : 1959, मुंबई SUA साहित्य सेवक, सौजन्य की मूर्ति एवं सम्पादक रत्न पंडित नाथूराम प्रेमी के रचनात्मक अवदान से हिन्दी का जैन साहित्य समृद्ध हुआ है। उनका जन्म मध्यप्रदेश के सागर जिले में देवरी ग्राम के एक सामान्य पारवाड़ बाणिया मोदी परिवार में हुआ। इन परिवारों का मूल निवास मेवाड़ था, जहाँ से इनके पूर्वज आजीविका के लिए बुन्देलखण्ड में आ बसे। नाथूरामजी के पिता ढूंडेलाल आस-पास के गाँवों में घूम-घूम कर चार पैसे कमा लेते थे। नाथूरामजी गाँव की शाला में ही पढ़े। कुशाग्र बुद्धि होने से शिक्षकों की उन पर कृपा दृष्टि रही। पढ़-लिखकर शिक्षक रूप में नौकरी भी लग गई। मासिक पगार शुरु में डेढ़ रुपया एवं कुछ समय बाद छ: रुपए मिलते रहे। अत: वे मितव्ययी एवं निर्व्यसनी रहे। उनका यह संस्कार आगे चलकर उनकी प्रकाशन विद्या का मानदण्ड बना रहा। इसी दरम्यान उनका परिचय शायर अमीर अली साहब से हुआ। उनकी शौबत में उन्हें कविता करने का शौक लगा। उनकी कविताएँ काव्य सुधाकर, रसिक मित्र आदि स्थानीय पत्रिकाओं में छपने लगी। इसी समय उनके नाम में 'प्रेमी' उपनाम जुड़ा। लेखकों एवं कवियों के समागम से उनका साहित्य एवं जैन शास्त्रों का ज्ञानवर्धन होता रहा। तभी मुंबई की प्रांतीय जैन सभा को अपने मुख पत्र "जैन मित्र'' के लिए सम्पादक की आवश्यकता हुई। नाथूरामजी की दरख्वास्त मंजूर भी हो गई पर मुंबई जाने के लिए उनके पास किराये के लिए पैसे न थे।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy