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________________ लेखक द्वारा लिखित "ओसवाल जाति का इतिहास कसौटी पर "आपकी शोध अनुसंधान एवं अनुशीलन भारतीय समाज शास्त्रियों एवं समाजिक इतिहास के अध्येताओं के लिए अत्यंत महत्व पूर्ण है। जिनका सम्बंध ओसवाल परम्परा और उसकी जड़ों और शाखाओं से अंतरंग है, उनके लिए इतिहास के ये पृष्ठ अत्यंत मनोरम होंगे।" -डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी वरिष्ठ अधिवक्ता, उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) नई दिल्ली "सचमुच आपने अत्यंत अध्यवसाय, लगन और परिश्रम से ओसवाल समाज की उत्पत्ति और तज्जन्य ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक सामग्री का गहन अध्ययन किया है। मैं अभिभूत हो गया। इस वैदुष्य का लाभ सबको मिलना चाहिए। ... आपने एक ऐतिहासिक महत्व का काम किया है जिसकी महत्ता वर्तमान और भविष्य दोनों के लिए निर्विवाद है।" -डा. कल्याणमल लोढ़ा, कोलकाता "ओसवाल वंश का इतिहास कई दशकों पूर्व श्री भंडारी ने प्रस्तुत किया था। परन्तु वह श्रीमंत परिवारों का इतिहास था। युग के बदले हुए परिप्रेक्ष्य में ओसवाल वंश की उपलब्धियों के विविध आयामों का यह समग्र आकलन समाज की दृष्टि से ही नहीं, समाज शास्त्रीय दृष्टि से भी आपका एक महत्वपूर्ण अवदान होगा।" -डा. मूलचन्द सेठिया, जयपुर "ओसवाल समाज के सम्बंध में ऐसा शोध ग्रंथ देखने में नहीं आया। वस्तुतः यह ग्रंथ एक ऐतिहासिक दस्तावेज है। ... वृहद् ओसवाल समाज की शक्ति को पहचानने की दृष्टि से यह विशिष्ट उपलब्धि है।" -श्री कन्हैयालाल सेठिया, साहित्य वाचस्पति "इस ग्रंथ को लिख कर श्री मांगीलाल भूतोडिया ने जो महत्वपूर्ण कार्य किया है उसके लिए मैं उनका समादर करते हुए उनको हृदय से धन्यवाद देता हूँ–भारतीय इतिहास की इस महत्वपूर्ण कड़ी का प्रामाणिक विवेचन हमें यों सुलभ हो गया। यह ग्रंथ पठनीय ही नहीं, अध्ययनीय और सयत्न संग्रहणीय भी है। -डा० रघुबीर सिंह, डी. लिट. सीतामउ
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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