SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन-विभूतियाँ समाहित कर उनका परिचय दिया है। डॉ. ए. एन. उपाध्ये ने ग्रंथ का सम्पादकीय लिखा है। सन् 1969 में 'श्रीचन्द्र कृत कथा कोश' का सम्पादन कर प्रकाशित कराया । 152 इधर अतिशय कार्यबद्धता के कारण डॉ. जैन रुग्ण रहने लगे थे। सन् 1965 से वक्षस्थल में पीड़ा रहने लगी। हार्ट अटैक भी आया । सन् 1968 में रुग्णता दोहरी हो गई। सन् 1969 में वे सेवानिवृत्त हुए । उनके सुपुत्र श्री प्रफुल्लकुमार मोदी महाराजा भोज की धारानगरी के स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राचार्य पद पर नियुक्त थे। वे उन्हीं के पास रहने लगे। सन् 1970 में डॉ. जैन द्वारा सम्पादित 'सुदर्शण चरिउ' का प्रकाशन हुआ। नयनन्दी प्रणीत इस काव्य ग्रंथ में सेठ सुदर्शन की कथा है। इसी वर्ष भारतीय ज्ञानपीठ ने डॉ. जैन द्वारा सम्पादित संस्कृत ग्रंथ 'सुदर्शनचरितम्' का भी प्रकाशन किया। डॉ. जैन ने इस बीच अपने पारिवारिक "मोदी वंश" का छन्दबद्ध इतिहास लिखा । सन् 1973 में भारतीय जैन महामण्डल के अध्यक्ष के आग्रह पर भगवान् महावीर के 2500वीं निर्वाण शताब्दि के उपलक्ष में एक विशाल ग्रंथ के प्रणयन का कार्य डॉ. जैन को सौंपा गया। डॉ. जैन ने इस उत्तरदायित्व को गम्भीरता से लिया और "जैन धर्म साहित्य और सिद्धांत" नामक ग्रंथ की रचना की। वे अस्वस्थता के बावजूद रात-दिन 15 घंटे चिंतन लेखन में व्यस्त रहते। एक दिन वे बेहोश हो गए। हृदयाघात सामान्य न था । सभी परिवारजन इकट्ठे होने लगे। अन्तत: 13 मार्च 1973 को वे महाप्रयाण कर गए। प्राचीन जैन साहित्य को आलोकित करने वाला सूर्य अस्त हो गया। उनके दो ग्रंथों - "वीर जिणिंद चरिउ " और "जिनवाणी' का प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ ने सन् 1975 में किया। इसी तरह भारत जैन महामंडल द्वारा उनके "प्रागैतिहासिक जैन परम्परा' ग्रंथ का प्रकाशन मरणोपरांत हुआ। डॉ. जैन जैसे महामनीषी को पाकर जैन समाज कृत्यकृत्य हो गया ।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy