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________________ जैन-विभूतियाँ संस्थान बनाने में सफल हुए। वहाँ से सेवानिवृत्त होकर वे उदयपुर आ गए। बहत्तर वर्ष की आयु में भी अपने यशस्वी कृतित्व से संतुष्ट होकर विश्राम करना उन्हें रुचा नहीं। जिस विद्याभवन की स्थापना उन्होंने सन् 1931 में की थी, उसका सर्वांगीण विकास उनके जीवन का ध्येय बन गया। आपने सेवा मन्दिर ट्रस्ट की स्थापना कर अपने जीवन की लगभग समस्त बचत ट्रस्ट को प्रदान कर दी। आज सेवा मन्दिर ग्राम सेवा के क्षेत्र में देश की एक प्रमुख संस्था है जिसका कार्यक्षेत्र लगभग 350 गाँवों तक फैल गया है। इसमें 104 पूर्णकालीन एवं 370 अंशकालीन कार्यकर्त्ता सेवा भाव से कार्यरत हैं। सन् 1961 से ही श्री मेहता अखिल भारतीय प्रौढ़ शिक्षा संघ के अध्यक्ष रहे । प्रौढ़ शिक्षा के माध्यम से अपढ़ ग्रामीणों में जागृति लाने का देशव्यापी अभियान चलाया। सेवा मन्दिर को इस हेतु फोर्ड फाउन्डेशन से पचास हजार डालर की सहायता मिली । कृषि सुधार, ग्रामोद्योग, आदिवासियों के विकास के लिए ग्राम संगठन एवं महिला मंडल का संस्थापन इस योजना के अंग थे। लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा स्थापित लोक समिति संगठन के भी वे अध्यक्ष रहे। 131 सन् 1969 में भारत सरकार ने उन्हें 'पद्म विभूषण' की उपाधि से सम्मानित किया। साराक्यूज विश्वविद्यालय ने उन्हें विलियम टोली एवार्ड दिया । उदयपुर विश्वविद्यालय ने सन् 1976 में उन्हें 'साहित्य वारिधि' पुरस्कार से नवाजा। सन् 1979 में वे नेशनल फेडनेशन एवं युनेस्को एसोसियेशन के सदस्य मनोनीत हुए। सन् 1982 में राजस्थान विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट्. की उपाधि देकर सम्मानित किया । देश विदेश में नागरिकों पर होने वाले अत्याचारों एवं दमन के विरुद्ध कार्य करने वाली अन्तर्राष्ट्रीय संस्था " एमनेस्टी इंटरनेशनल' ने श्री मेहता को भारतीय संभाग का उपाध्यक्ष मनोनीत किया । सत्यनिष्ठा, निर्भीकता एवं अदम्य आशावाद के धनी, दलित व गरीब जनता की सेवा में समर्पित श्री मेहता सन् 1985 में उदयपुर में स्वर्गस्थ हुए ।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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