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________________ 120 जैन-विभूतियाँ अर्ज की एवं अन्तत: उनके खिलाफ केस करना पड़ा। वीरचन्द भाई की पैरवी से इन कुप्रथाओं का अंत हुआ। . जैनों के प्रमुख तीर्थ सम्मेद शिखर पर अंग्रेज साहबों ने अपने बंगले बनाने की योजना बनाई। यह जानकर वीरचन्द भाई कलकत्ता गए। उन्होंने तीर्थ स्थल सम्बंधी समस्त दस्तावेजों की खोज की एवं उन पर जैन समाज का आधिपत्य सिद्ध किया। वीरचन्द्र भाई ने अखिल भारतवर्षीय जैन कॉन्फ्रेंस के प्रतिनिधि रूप में सन् 1893 में अमरीका के शिकागो शहर में आयोजित विश्व धर्म परिषद् में भारतीय दर्शन एवं संस्कृति की तेजस्विता एवं जैन धर्म के वैज्ञानिक तत्त्व चिंतन की सटीक व्याख्या कर विभिन्न धर्मों के विद्वानों को प्रभावित किया था। इस सभा में विभिन्न देशों एवं विभिन्न धर्मों के 3000 से अधिक प्रतिनिधि एकत्र हुए थे, 10000 श्रोताओं की उपस्थिति में 1000 से भी अधिक आध्यात्म एवं दर्शन सम्बंधी गम्भीर शोध-पत्रों का वाचन हुआ था। इस ऐतिहासिक धर्म-परिषद् को स्वामी विवेकानन्द ने भी संबोधित किया था। उनत्तीस वर्ष के युवा विद्वान् वीरचन्द भाई की वाग्धारा ने श्रोताओं को सम्मोहित कर दिया था। इनके ठेट काठियावाड़ी परिवेश पर भारतीयता की छाप थी। अमरीकी अखबारों में उनके व्याख्यान की भूरि-भूरि प्रशंसा हुई। इनकी वाणी में मात्र पंडिताई नहीं थी-बोध और साधना सिद्ध हृदय स्पर्शी आकर्षण था। उन्होंने अपने व्याख्यानों में भारत में प्रचाररत ईसाई मिशनरियों की बेबाक आलोचना भी की। वीरचन्द भाई महान राष्ट्रप्रेमी थे। उस समय भारत की आर्थिक एवं राजनैतिक स्वतंत्रता की वकालत करने वाले वे प्रथम मनीषी थे। उस प्रवास में वीरचन्द भाई ने अमरीका के अनेक नगरों में घूमघूम कर प्रवचन दिए। वीरचन्द भाई द्वारा संस्थापित '"The school of oriental philosophy'' नामक संस्थान ने भारतीय संस्कृति एवं आदर्शों का प्रसार करने में अभूतपूर्व योगदान दिया। अनेक अमरीकी नागरिकों ने उनकी प्रेरणा से शाकाहार एवं अहिंसा व्रत अंगीकार किए। शिकागो में उन्होंने "Society for the Education of women
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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