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________________ [ 12 ] सम्यग्ज्ञानादि मोक्षमार्ग और उनके साधन गुरु आदि के प्रति अपने योग्य आचरण द्वारा आदर-सत्कार करना विनय है और इससे युक्त होना विनय सम्पनता है। (3) शील व्रतों का अतिचार रहित पालन करना__ (अहिंसादिषु व्रतेषु तत्प्रतिपालनार्थेषु च क्रोधावर्जनादिषु शीलेषु निरवद्या वृत्तिः शीलवतेष्वनतीचारः) अहिंसादिक व्रत हैं और इनके पालन करने के लिये क्रोधादिक का त्याग करना शील है । इन दोनों के पालन करने में निर्दोष प्रवृत्ति रखना शीलवतानतिचार है। (4) ज्ञान में सतत उपयोग(जीवादि पदार्थ स्वतत्त्व विषये सम्यग्ज्ञाने नित्यं युक्तता अभिक्ष्णज्ञानोपयोगः) जीवादि पदार्थ रूप स्वतत्त्व विषयक सम्यग्ज्ञान में निरन्तर लगे रहना अभिक्षणशानोपयोग है। (5) सतत संवेग(संसार दुःखान्नित्यभीरुता संवेगः) संसार के दुःखों से निरन्तर डरते रहना संवेग है। (6) शक्ति के अनुसार त्याग (त्यागो दानम् तत्त्रिविधम् आहारदानमभयदानं ज्ञानदान चेति । तच्छक्तितो यथाविधि प्रयुज्यमानं त्याग इत्युच्यते) त्याग दान है । वह तीन प्रकार का है-आहार दान, अभय दान और शान दान, उसे शक्ति के अनुसार विधिपूर्वक देना यथा शक्ति त्याग है। (7) शक्ति के अनुसार तप(अनिगृहित वीर्यस्य मार्गाविरोधि कायक्लेशस्तपः) शक्ति को न छिपाकर मोक्ष मार्ग के अनुकूल शरीर को क्लेश देना यथाशक्ति तप है। (8) साधु समाधि (यथा भाण्डागारे दहने समुत्थिते तत्प्रशमनमनुष्ठीयते बहूपकारत्वात्तथाऽनेक व्रतशील समृद्धस्य मुनेस्तपसः कुतश्चित्प्रसूहे समुपस्थिते तत्सन्धारणं समाधि:) जैसे भाण्डार में आग लग जाने पर भाण्डार बहुत उपकारी होने से आग को शान्त किया जाता है इसी प्रकार अनेक प्रकार के व्रत और शीलों से समृद्ध मुनि के तप करते हुये किसी कारण से विध्न के उत्पन्न होने पर उसका संधारण करना-शान्त करना साधु समाधि है।
SR No.032481
Book TitleKranti Ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanak Nandi Upadhyay
PublisherVeena P Jain
Publication Year1990
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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