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________________ से निन्दा रूपी पुत्र का प्रसव होता है। आत्म-गुण-दर्शन की आदत से पर-दोष-दर्शन होने लगा और ऐसी दोष-दृष्टि के पाप से निन्दा प्रकट होने लगी। भयानक क्या है - दृष्टि दोष अथवा दोष दृष्टि ? मानव-जीवन को अत्यन्त दूषित करने वाले दो महान दोष हैं - दृष्टि दोष तथा दोष दृष्टि। दृष्टि-दोष अर्थात् दृष्टि में दोष अर्थात् विकार भाव। जिसकी दृष्टि स्त्रियों अथवा पुरुषों के प्रति अच्छी नहीं हो उसे हम दृष्टि दोष युक्त कह सकते है। ___प्राय: युवा स्त्री-पुरुषों में यह दोष विशेष प्रमाण में दृष्टिगोचर होता है, फिर भी अनेक वृद्ध पुरुषों में भी दृष्टि-दोष होने का अनेक बार अनुभव होता है। दूसरा है दोष-दृष्टि, जिसकी दृष्टि अन्य व्यक्तियों के दोष ही देखती है वह है दोष-दृष्टि। ___ इस दोष-दृष्टि के कारण से ही अन्य व्यक्तियों की निन्दा करने की कुटेव उत्पन्न होती है। अपेक्षाकृत दृष्टि-दोष की अपेक्षा दोष-दृष्टि का पाप अत्यन्त भयंकर है, क्योंकि दृष्टि-दोष में तो केवल स्वयं का ही मन विकारी होता है, जबकि दोष-दृष्टि-युक्त व्यक्ति तो निन्दा करके अन्य अनेक व्यक्तियों के मन दूषित करने का कार्य करता है। ईर्ष्या भयानक दोष : ___ अहंकार से उत्पन्न ईर्ष्या कैसी भयानक होती है ? उच्च कोटि के आचार्य पद पर पहुंचे हुए महात्मा भी ईर्ष्या एवं निन्दा के कारण दुर्गतियों में जाने के शास्त्रों में अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं। । पूज्य पंन्यास प्रवर श्री चन्द्रशेखर विजयजी महाराज श्री ने इस कथा का अत्यन्त ही रोचक शैली में वर्णन किया है। उनकी कथा उन्हीं के शब्दों में वर्णित है: वे समर्थ जैनाचार्य थे। उनका नाम था नयशीलसूरिजी। वे अत्यन्त ज्ञानी थे, परन्तु कदाचित् उस ज्ञान का ही उन्हें अजीर्ण हो गया होगा अत: वे अत्यन्त सुखमय थे। समस्त दिन वे आराम से ही रहते थे। उनके एक अत्यन्त विद्वान शिष्य था, जिसमें विद्वता के साथ नम्रता भी विद्यमान थी। अत: अनेक साधु इसके पास स्वाध्याय करते, पाठ लेते। गुरूदेव की सुखशील जीवन पद्धति के कारण व्याख्यान भी यह शिष्य ही देता था। इस कारण लोग भी इस शिष्य के समीप अधिक बैठते और उसे तत्व-विषयक प्रश्न पूछते। इस बात से गुरूदेव नयशीलसूरिजी को तो अत्यन्त हर्ष होना चाहिए था, परन्तु दुर्भाग्यवश वे उसकी ईर्ष्या करने लगे। अपने शिष्य का यह उत्कर्ष वेसहन नहीं कर पाये। RECOGER 92 909090900
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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