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________________ ORORSCEO190000000 गाँधीजी के वे विचार वर्तमान सुधारकों और तथाकथित गाँधी-भक्तों के लिये विशेष रूप से मनन करने योग्य हैं। गाँधीजी के विचारों का सर्वाधिक नाश तथाकथित गाँधी वादियों ने ही किया है, यह कहा जाये तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। दृढ़ रूढियों का आदर होना चाहिये भाँति-भाँति के आधुनिक प्रयोग करके हमें देश की जनता को हानि पहुँचाने का कार्य कदापि नहीं करना चाहिये। अनेक आयुर्वेदिक औषधियों को जिस प्रकार बार बार पूट देकर प्रभावशाली बनाई जाती हैं, उसी प्रकार से अनेक रूढियाँ एवं परम्पराऐं जो भारतीय प्रजा-जनों का अत्यन्त हित करनेवाली हैं शिष्ट-जनों द्वारा आचरित होकर, पुट दिये जाकर दृढ़ बनी हुई होती हैं। उन रूढियों के लिये तो हमारे हृदय में सम्मान होना चाहिये, उनके प्रति तो बहुमान जाग्रत होना चाहिये, उनके लिये तो हमें गौरव अनुभव करना चाहिये। इसके बदले अनेक बुद्धिजीवियों को तो उनके प्रति अत्यन्त तिरस्कार हो ऐसा प्रतीत होता है, घृणा हो ऐसा प्रतीत होता है। यह सचमुच अत्यन्त खेद की बात है। ऐसी अनेक बातें हैं जो पुरानी थीं फिर भी जनता के लिये अत्यन्त कल्याणकारी थी। स्त्री की परतन्त्रता के पीछे उत्तम आशय हमारी प्राचीन संस्कृति में नारी को स्वतन्त्रता देने का सर्वथा निषेध था। "न स्त्री स्वातंत्रयमर्हति" अर्थात् स्वतंत्रता देने के योग्य नहीं है। यह बात नारी के घर से बाहर की स्वतन्त्रता की निषेधक थी। उसे पुरुष की तरह विश्व में चाहे जहाँ, चाहे जब, चाहे जिसके साथ हिलने-मिलने की स्वतंत्रता नहीं थी। नारी को इस प्रकार की मर्यादा का पालन करना इसलिये आवश्यक था कि (यदि वह ब्रह्मचारिणी साध्वीजी का जीवन नहीं जी सके तो) वह विवाह करके माता बननेवाली है। अत: उसके आचार-विचारों का प्रभाव उसकी भावी सन्तान पर अवश्यमेव पड़ेगा और यदि उसे स्वतंत्रता प्रदान की जाये, उसका सतीत्व नष्ट हो जाये तो उसकी भावी सन्तान निकृष्ट होंगी। अत: भारत की भावी प्रजा उत्तम संस्कार युक्त हो इस उत्तम आशय से नारी को बाह्य क्षेत्रों में पुरुष के समान स्वतन्त्रता प्रदान करने का निषेध था। घर के भीतर तो नारी पूर्णत: स्वतंत्र थी। पति-सेवा, गृह-शोभा और बाल-पालन जैसे कार्यों में उसे सम्पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की गई थी, परन्तु आज प्राचीन रूढियों को तोड़ डालने में ही शौर्य समझने वाले सुधारकों ने स्त्री को स्वतन्त्र निषेध की आर्ष-प्रणीत रूढि को नष्ट प्राय: कर दी। इसका परिणाम क्या मिला? स्त्रियों काशील खतरे में पड़ गया। अनेक नारी बाह्य ज्ञान का, स्वतंत्रता का लाभ अवश्य प्राप्त कर सकी परन्तु उन्हें अपने उज्जवल शील की बलि देनी पड़ी, अपनी सन्तान के सदाचार सुसंस्कारों की बलि देनी पड़ी और भारत की जनता दिन प्रतिदिन सुसंस्कार विहीन बन कर विषय-वासनाओं की भूखी होती गई।
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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