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________________ हम केवल देहधारी मानव को ही 'मानव' नहीं कहना चाहते। हम तो मानवता की सौरभ फैलाने वाले एवं मनुष्यता की ज्योति के द्वारा विश्व को जगमगाने वाले मनुष्यों को ही 'मानव' कहना चाहते हैं। ऐसी मानवता' प्राप्त होती है - जीवन को मार्गानुसारी के गुणों से सुरभित-सुशोभित कर देने में। जिस व्यक्ति के जीवन में मार्गानुसारिता के गुणों का अमूल्य कोषागार है, उसके पास सांसारिक सम्पत्ति कितनी है उसका हिसाब लगाने की आवश्यकता नहीं है। बाह्य सम्पत्ति से सम्पन्न व्यक्ति आध्यात्मिक जगत् का महान् धनवान ही है। 'न्याय-सम्पन्न-वैभव' से लगा कर 'इन्द्रियविजय' तक के पैंतीस गुणों की सम्पदा जिसके पास है, वह मनुष्य ही वास्तविक 'मानव' है। ऐसे मानव का जीवन मांगल्य की मंगलमय सुवासित वाटिका है, जिसके सद्गुणों की सुरभि सर्वत्र सुगंध फैलाती है, जिसकी वाणी विवेकपूर्ण होती है, जिसकी विचारधारा संस्कारों से समृद्ध होती है और जिसका आचरण आत्माभिमुखी होता है। ऐसा 'मानव' ही सच्चा ‘इन्सान' है और 'इन्सान मिट कर 'भगवान' बनने के पुण्य-पथ का प्रवासी है। मार्गानुसारिता के गुण मानव-देहधारी मानव को 'सच्चा मानव' बनानेवाले हैं और इस कारण ही इन पर इतना विशद एवं विस्तृत विवेचन किया गया है। आधुनिक विश्व में इन गुणों का प्रचार एवं प्रसार व्यापक होना अत्यन्त आवश्यक है। इन पैंतीस गुणों में से बारह गुणों का विवेचन इस प्रथम भाग में समाविष्ट किया गया है जिसे 'मंगल मन्दिर खोलो' के नाम से प्रकाशित किया गया है। हम सबके जीवन में मानवता का मंगल मन्दिर खोलने में यह ग्रन्थ अत्यन्त ही उपयोगी सिद्ध होगी ऐसी आन्तरिक अभिलाषा व्यक्त करता हूँ। ___ बम्बई वड़ाला के वि.सं. 2041 के चातुर्मास में प्रत्येक रविवार को युवक शिविर में मार्गानुसारी के गुणों पर वाचना देने की अवसर प्राप्त हुआ। चिन्तनमय-तत्त्वयुक्त वाचनाओं ने अनेक युवकों के जीवन में शुभ सुकृत करने के भाव जागृत किये। समस्त भाइयों के आग्रह से वे वाचना प्रत्येक रविवार को होती थी। उन वाचनाओं को सुन्दर ढंग से व्यवस्थित करके सुन्दर ग्रन्थ का रूप देने के विचार को साकार किया है दक्षिण भारत में हिन्दी का उपयोग होने के कारण गुजराती से हिन्दी का अनुवाद किया है। यह संकलन 'मंगल मन्दिर खोलो' के नाम से आपके समक्ष प्रस्तुत कर सका हूँ। अन्त में इस ग्रन्थ के पठन, मनन एवं परिशीलन से विश्व के समस्त जीव अनुपम मंगल प्राप्त करें, सबके जीवन मानवीय गुणों के मंगल मन्दिर तुल्य बनें और सभी लोग शाश्वत सुख के स्वामी बने यही शुभाभिलाषा। मुनि देवरत्नसागर श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर कोयम्बत्तुर ता. 24-10-2013 maramanam . .momomomy
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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