SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ REGCGCGCGe à casos... यदि पति अथवा पत्नी धार्मिक वृत्ति वाले न हों, सदाचार के पालक न हों तो वे अपनी सन्तानों में भी उत्तम संस्कारों का बीज बोने में समर्थ नहीं होते। अतः केवल अपने व्यक्तिगत सुख अथवा पसन्द को प्रधानता न देकर "मेरे जीवन में प्रविष्ट होने वाला पात्र (पति अथवा पत्नी) मेरी भावी सन्तान में उत्तम संस्कार डाल सकेगा अथवा नहीं?" इसकी अत्यन्त ध्यानपूर्वक जाँच करके उसे ही प्राथमिकता एवं प्रधानता देनी चाहिये । अत: हमें समान शील एवं कुल वाले व्यक्ति के साथ विवाह करना चाहिये। समान आचार एवं विचार युक्त जीवन साथी जीवन में उत्तम धर्म एवं संस्कार डालने में और उन्हें सुदृढ़ करने में अत्यन्त सहायक होता है। अनुपमा देवी का अनुपम परामर्श जब वस्तुपाल एवं तेजपाल अपनी अपार सम्पत्ति भूमि में गाड़ने के लिये गये, तब उनका पुण्य प्रबल होने से भूमि खोदने पर उसमें से चरू निकला, जिसमें अपार धन था। उन्होंने सोचा, 'अब क्या करें? इतना अधिक धन कहाँ ड़ालें ? " दोनों भाई चिन्ता में पड़ गये। उस समय तेजपाल की पत्नी श्रीमती अनुपमा देवी ने परामर्श दिया, “इस धन का उपयोग ऐसे स्थान पर करो कि जिसके द्वारा लाखों जीव सुमार्ग प्राप्त करें, परमात्म- पद को स्पर्श करने की साधना करें और जिन-भक्ति में लगकर सिद्धत्व प्राप्त करें। "धन का श्रेष्ठ सदुपयोग जिन मन्दिर का निर्माण कराने में है। देवाधिदेव भगवान श्री जिनेश्वर परमात्मा का ऐसे भव्य नैन - रम्य मंदिर का निर्माण कराओ कि लोग धन के इस सर्वोत्तम सदुपयोग को निहार कर चकित हो जायें, परन्तु उस धन को वे लूटना चाहें तो भी लूट न सकें । " अनुपमा देवी के उस उत्तम परामर्श के प्रताप से ही आबू पर्वत पर देलवाड़ा के अति भव्य एवं रमणीय कलाकृतियों से सुशोभित जिनालयों का निर्माण हुआ, जिन्हें देखकर आज भी सहस्त्रों नेत्र शीतलता अनुभव करते हैं। आबू के भव्य जिनालयों के निर्माण का कारण कौन है ? अनुपमादेवी जैसी उत्तम रक्त एवं कुलीनता वाली स्त्री के साथ तेजपाल का सम्बन्ध | उत्तम कोटि की पत्नी के साथ सम्बन्ध ने तेजपाल वन को भी उत्तम धर्म-मार्ग का महान् प्रवासी बनाया। पुनिया की महानता में धर्मपत्नी का योगदान - भगवान महावीर के श्रीमुख से प्रशंसित महान् श्रावक पुनिया में परमात्मा के श्रीमुख से स्वधर्मी भक्ति की महिमा श्रवण कर स्वधर्मी भक्ति करने का मनोरथ जाग्रत हुआ। अत्यन्त अल्प कमाई वाला पुनिया नित्य केवल दो व्यक्ति ही भोजन कर सकें उतना अर्जित करता था। शेष समस्त समय वह सामायिक आदि धर्म-साधना में ही व्यतीत करता था । अब क्या हो? नित्य एक स्वधर्मी व्यक्ति को यदि भोजन कराना हो तो तीन व्यक्तियों के ne 59 92500025 ॐ
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy