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________________ मार्गानुसारी का तृतीय गुण है - उचित विवाह। उचित विवाह से तात्पर्य है योग्य विवाह। विवाह की बात में काम-पुरुषार्थ की बात आती ही है। आर्यावर्त की संस्कृति धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों पर निर्भर है। इनमें मोक्ष प्रधान पुरुषार्थ है और धर्म प्रबल सहायक पुरुषार्थ है। अर्थ एवं काम को भी पुरुषार्थ कहने का कारण यह है कि ये दोनों धर्म से सुनियन्त्रित होते ब्रह्मचर्य का पालन सर्वोत्तम सर्वोत्तम तो वे ही हैं जो जीवन भर उत्तम प्रकार के ब्रह्मचर्य का पालन करके श्रेष्ठ धर्मपुरुषार्थ की आराधना करते हैं। इस प्रकार की आत्मा हैं - जैन मुनिगण एवं साध्वीजी महाराज, जो संसार में अपार वैभव एवं ऋद्धि-सिद्धि होने पर भी उनके प्रति ज्वलन्तविरक्त होकर जीवन भर ब्रह्मचर्य की श्रेष्ठ साधना करते हैं और उत्तम संयम का पालन करते हैं। सचमुच, वे अत्यन्त धन्य हैं। विवाह-सुख प्राप्त करने की अत्यन्त अनुकूलता होने पर भी जो उसे दुःख स्वरूप मान कर प्रथम से ही उसका त्याग कर देते हैं ऐसे मुनिगण तो धन्य हैं ही, परन्तु वह लोचनदास भी धन्य है कि जो गया तो था विवाह-सुख प्राप्त करने के लिये, परन्तु एक सामान्य घटना ने उसे आजीवन ब्रह्मचारी बना दिया। लोचनदास और उसकी पत्नी का शौर्य सामान्य स्थिति का लोचनदास अत्यन्त निर्धन था, जिससे वह अत्यन्त ठाठ से विवाहोत्सव मनाने के लिये असमर्थ था। वह सादगी पूर्वक विवाह करने के लिये अपनी मंगेतर के गाँव आ रहा था। गाँव के बाहर एक कुँआ था जहाँ अनेक पनिहारिनें पानी भर रही थीं। लोचनदास वहाँ आकर रुका और उसने एक पनिहारिन को पूछा, "बहन! अमुक भाई का घर कहाँ है?" उस सुन्दरी लड़की ने उंगली के संकेत से उस भाई का घर बता दिया। लोचनदास उस भाई के घर पर पहुँच गया। निश्चित मुहूर्त में लोचनदास का उसकी मेंगेतर के साथ विवाह हो गया। रात्रि होने पर शयनकक्ष में जब पति-पत्नी का चहरा देखा तो वह दिग्मूढ़ बन गया, "अरे! यह तो वही लड़की है जिसे मैंने आज प्रात: अपने भावी ससूर का घर पूछा था। इस लड़की को तो मैंने 'बहन' कह कर सम्बोधित की थी।" वह लड़की (उसकी पत्नी) भी स्तब्ध होकर लोचनदास की ओर देखने लगी। उसे भी प्रात:काल की समस्त घटना का स्मरण हो आया। GORORSCORS 50 509009090
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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