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________________ देनी चाहिये, ताकि जीवन में से निरर्थक व्यय स्वत: ही समाप्त होजायेगा। यदि निरर्थक व्यय की कटौती होती रहेगी तो धन बचेगा और उस बचे हुए धन में से सात क्षेत्रों एवं अनुकम्पा आदि कार्यों में व्यय करने की इच्छा होगी। आपकी बचीहुई सम्पत्ति अनेक दुःखी स्वधर्मियों का उद्धार करेगी। उससे कुछ व्यक्ति नवजीवन प्राप्त करेंगे, सातो क्षेत्र सक्षम हो जायेंगे और मंदिरों, पाठशालाओं, ज्ञान-भण्डारों, स्वधर्मी-वात्सल्य आदि अनेक धर्म-प्रवृत्तियों एवं धर्मकार्यों के लिये आपका धन उपयोगी होगा। ___ गुजरात एवं सौराष्ट्र जैसे प्रदेशों में जहाँ दो-दो वर्षो से भयंकर दुष्काल पड़ रहा है, अनाथ, विकलांग एवं निराधार पशु पानी के लिये भटक रहे हैं और अनेक स्वधर्मी एवं अन्य व्यक्ति भी अत्यन्त आर्थिक संकट सहन कर रहे हैं। ऐसे कार्यों के लिये आप अपनी बची हुई सम्पत्ति का उपयोग करें और अनेक प्राणियों के प्राण बचाकर अभयदान का परम सुकृत्य करें। प्राप्त धन-सम्पत्ति का अपव्यय न करें। दुरूपयोग करने से आपकी आत्मा कलुषित होगी। अपनी आत्मा को पाप के बोझ से भारी नहीं होने दें। अपनी आय का आप उचित व्यय करें। उचित व्यय दो प्रकार से होता है - (1) अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं में कटौती करके अत्यन्त ही आवश्यक वस्तुओं में धन का व्यय करें और (2) दीन-दःखियों के लिये तथा धर्म-कार्यों में अधिकतर धन-राशि का सदुपयोग करें। इस प्रकार आत्मा को विमल (निर्मल) एवं विशुद्ध बनाकर कर्म के बोझसे हलका होना है। अनुचित व्यय से हानि आजकल प्राय: एक दूसरे को देखकर अनेक पाप हो रहें हैं पड़ोसी के घर में फ्रीज तथा रंगीन टी.वी. आ गये हो और हमारे घर में वे साधन-सामग्री न हो तो उसके लिये निरन्तर मन में अशान्ति रहती है। उन्हें कितनी शीघ्रता से लाया जाये, उसके लिये निरन्तर प्रयास होते रहते हैं। उनके लिये अधिक धन की आवश्यकता होती है जिसके लिये अन्याय एवं अनीति का मार्ग भी लेने की इच्छा हुए बिना नहीं रहती। इस प्रकार अनुचित व्यय के कारण अनेक हानियां होने लगी। ऐसा दुस्साहस कदापि न करें - कुछ मनुष्य अपने व्यापार-धंधे आदि में अपनी समस्त धन-राशि लगा देते हैं। तदुपरान्त अन्य व्यक्तियों से अत्यन्त धनराशी ब्याज पर लाकर धंधा करतें हैं। वे पांच लाख की धनराशि अपनी और पैंतालीस लाख रूपयें किसी अन्य से लाकर पचास लाख का व्यापार करते हैं। जब तक पुण्य प्रबल हो तब तक तो ठीक है, परन्तु पापोदय होने पर सब चला जाये तो क्या होगा? गृहस्थों को ऐसा दुस्साहस कदापि नहीं करना चाहिये। ऐसा करने से यदि व्यापार में हानि हो जाये और जब तक ऋण चुकाया न जा सके तब तक नींद और शान्ति हराम हो जाये। फिर भी यदि तीव्र पापोदय से ऋण चूकता न हो सके तो समाज में प्रतिष्ठा नष्ट हो जाये और धर्म तथा
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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