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________________ मार्गानुसारी के पैंतीस गुणों में सर्वप्रथम गुण है "न्याय-सम्पन्न वैभावा" आर्यावर्त की संस्कृति चार प्रकार के पुरुषार्थ को वरण की हुई है - (1) धर्म पुरुषार्थ, (2) अर्थपुरुषार्थ, (3) काम पुरुषार्थ और (4) मोक्ष पुरुषार्थ। इन चारों में मोक्ष प्रधान पुरुषार्थ है और धर्म उसे प्राप्त करने के लिये अनन्य सहायक पुरुषार्थ है। इस प्रकार यदि सच पूछा जाये तो धर्म और मोक्ष दो ही पुरुषार्थ हैं। मोक्ष साध्य रूप पूरूषार्थ है। धर्म साधन रूप पुरुषार्थ है। आर्य देश में उत्पन्न प्रत्येक मानव का चरम लक्ष्य मोक्ष-प्राप्ति ही होना चाहिये। मानवजन्म की सम्पूर्ण एवं वास्तविक सफलता तब ही है,जब इस जन्म में मोक्ष-प्राप्ति के लिये ही प्रधानत: साधना की जाती हो। इसे ही धर्म-साधना अथवा धर्म पुरुषार्थ कहा जाता है। जिसके अन्तर में मोक्ष का ही लक्ष हो। उसके अन्तर में धर्म का ही पक्ष हो। मोक्ष सुख का कामी धर्म का ही पक्षधर होता है और धर्म का ही आराधक होता है। परन्तु संसार के समस्त जीव केवल धर्म के ही आराधक हों, यह नहीं होता। प्रत्येक जीव का वर्ग उसकी योग्यता के अनुसार भिन्न भिन्न होता है। इन वर्गों के हम इस प्रकार विभाग कर सकते हैं :1.सर्वविरतिधर आत्मा जिनका केवल मोक्ष का ही लक्ष्य है, मोक्ष प्राप्ति की ही जिन्हें तीव्र लगन है, मोक्ष के अतिरिक्त जिन्हें अन्य किसी वस्तु की आवश्यकता ही नहीं है, ऐसे केवल मोक्ष-लक्षी एवं उक्त मोक्ष को प्राप्त करने के लिये समग्र जीवन को पूर्णत: एवं उत्तम प्रकार से धर्ममय ढंग से यापन करने वाले पुण्यशाली। श्री जिनेश्वर परमात्मा की आज्ञा को सदा सिरोधार्य करके उसकी आराधना करने वाले एवं समस्त सांसारिक पापों से पूर्ण विराम कर चुके पुण्यशाली आत्मा अर्थात् सर्वविरतिधर साधु महाराज एवं साध्वीजी महाराज। ये साधु भगवान् मोक्ष पुरुषार्थ को ही ध्येय स्वरूप मानते है और उसकी प्राप्ति के लिये जो धर्म पुरुषार्थ की ही आराधना करते हैं तथा इनके अतिरिक्त दो पुरुषार्थ अर्थ एवं काम पुरुषाध (जिन्हें सरल भाषा में 'धन प्राप्ति का पुरुषार्थ' और 'भोग सुखों के उपभोग का पुरुषार्थ' कहा जा सकता है) को वे पूर्णतया हेय, त्याज्य मानते हैं। इतना ही नहीं, अर्थ एवं काम पुरुषार्थ के वे पूर्णरूपेण त्यागी भी होते हैं। romanamane 12 CRORaman
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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