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________________ सकता है और साथ ही साथ बचत करके दूसरों की सहायता भी कर सकता है, जिसके संबंध में निम्न सत्य घटना शिक्षण-पत्रिका' के सितम्बर 1986 के अंक में पढने में आई थी। सुदामा का सा जीवन - निर्वाह करने वाले महानुभाव : सुदामा के समान जीवन निर्वाह करने वाले वे महानुभाव कर्णाटक राज्य के केनेरा बैंक के सेवा-निवृत्त मेनेजर हैं, जिनका जीवन अनुकरणीय एवं अनुमोदनीय है। साठ वर्ष की आयु के वे जैन मेनेजर बाल-ब्रह्मचारी हैं। अपने भाई आदि होते हुए भी वे अकेले ही रहते हैं और त्याग तथा संयम का जीवन व्यतीत करते हैं। आन्ध्रा प्रदेश में बाढ आई तब तथा दक्षिण भारत के प्राकृतिक प्रकोप के समय उन्होंने अपनी चिरस्मरणीय सेवाऐं अर्पित की थी। तत्पश्चात् वे निरन्तर सेवा-कार्य में रत रहते हैं। बिना इस्तरी किया हुआ सफेद शर्ट और धोती उनकी वेश-भूषा है। फट जाने पर मरम्मत करके जहाँ तक उपयोग में लिये जा सकें तब तक वे वस्त्रों का उपयोग करते हैं। तीन जोड़ी वस्त्रों से अधिक परिग्रह वे नहीं रखते। अनेक वर्षों से अपनी आय में से सामान्य धन-राशि अपने निर्वाह के लिये रख कर तथा अपने मावतर के प्रति कर्तव्य पूर्ण करके शेष धन-राशि का वे सद्व्यय करते हैं। स्वयं को प्राप्त होने वाले 'प्रोविन्ट फण्ड' आदि की भी उन्होंने वसीयत कर दी है। उसमें से अपने मावतर आदि के पोषण केलिये अमुक धन-राशि रखकर शेष समस्त वसीयत सार्वजनिक कार्यों में व्यय करने का उल्लेख उन्होंने अपने वसीयत नामें में किया है। ___अपने स्वामित्व की एक कोठरी भी उन्होंने नहीं रखी। केवल 4x6 की छोटीसी कुटिया एक सामाजिक संस्था ने उन्हें आवास के लिये प्रदान की है जहाँ वे निवास करते हैं। उनके सामान में एक पुरानी टिन की छोटी सन्दूक, बिस्तर, एक मटकी, एक लोटा और वस्त्र सुखाने की रस्सी है। वे अपना समस्त कार्य स्वयं ही करते हैं। किसी समय उनकी दीक्षा ग्रहण करने की भावना थी परन्तु संयोगवश वे दीक्षा ग्रहण नहीं कर सके। निरन्तर अठारह वर्षों तक वे आयंबिल के रसोड़े में भोजन करते रहे। एक अवधूत एवं सद्भुत अपरिग्रही के रूप में उनकी जीवन सचमुच प्रेरणादायक है। एक संस्था के जितना कार्य वे अकेले अपने हाथ से करते हैं। वे अपना समस्त कार्य स्वयं ही करने का आग्रह रखते हैं, दूसरों को बताकर स्वयं उसमें से कदापि किनारा नहीं करते। वे किसी कार्य में लिप्तता नहीं रखते। कबूतर को चुग्गा डालने से लगाकर निरक्षरों को साक्षर करने तक की समस्त प्रवृतियाँ वे स्वयं ही करते हैं। यथा संभव जहाँ तक जा सकते हैं वहाँ तक वे पैदल ही जाते है। अनिवार्य प्रतीत हो तो ही वे किसी वाहन का उपयोग करते हैं। बालकों को सुसंस्कार प्रदान करने की प्रवृत्ति में वे अत्यन्त ही उत्साही एवं अग्रगण्य रहते है। Mes ser 163900090saar
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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