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________________ मार्गानुसारी के गुणों में बारहवाँ गुण बताया है - उचित व्यय : मनुष्य को अपनी आय के अनुरूप व्यय करना चाहिये। आय के अनुसार व्यय करना ही सच्ची विद्धता है। कहा है :- “एतदेव ही पाण्डित्यं, आयादल्पतरो व्ययः" व्यर्थ को दूर करो, सार्थक स्वत: ही प्रकट होगा - यहाँ स्मरण हो रहा है, प्रसद्धि शिल्पी मायकल ऐंजिलो की एक घटना। ___ मायकाल को मार्ग में चलते हए एक पत्थर अत्यन्त पसन्द आ गया। उसे उठाकर वह घर ले आया। अपनी शिल्प-कला के द्वारा उसने छीनी-हथौड़े की सहायता से उक्त पत्थर में से एक नैनरम्य मनोहर मर्ति तैयार की। तत्पश्चात उसने वह मूर्ति किसी अजायबघर में रखी। मायकल की इस मूर्ति को देखकर लोग अत्यन्त प्रसन्न हुए। किसी व्यक्ति ने मायकल को पूछा "मायकल साहेब। मार्ग में पड़े हुए एक निरर्थक पत्थर में से आपने ऐसी मनोहर प्रतिमा का निर्माण कैसे किया ? मायकल ने उत्तर दिया, "भाई सत्य कहूँ तो मैं प्रतिमा का निर्माण करता ही नहीं हूँ। मैं पत्थर में निहित व्यर्थ भागों को छैनी से दूर कर देता हैं। जिससे स्वत: ही प्रतिमा तैयार हो जाती है। प्रत्येक पत्थर में ऐसी कोई प्रतिमा छिपी हुई है। उस प्रतिमा को उजागर करने के लिये उस के व्यर्थ भागों को दूर करने की ही आवश्यकता होती है।" मायकल ने जो बात कही वह सचमुच अत्यन्त ही समझने योग्य है। जीवन रूपी पत्थर में से व्यर्थ व्यय, निरर्थक उड़ाऊ वृत्ति को यदि दूर कर दिया जाये तो आपके जीवन में भी एक अभिराम व्यक्तित्व की प्रतिमा खिल उठेगी। सार्थक एवं अनिवार्य व्यय ही करें - यह कहने की अपेक्षा व्यर्थ व्यय दर करे - यह कहा जाये तो अन्त में सार्थक ही शेष रहेगा। व्यर्थ को घटाने से जो शेष रहेगा उसका नाम ही है - सार्थका धन का अहंकार ही यह कहलवाता है : __ जिस व्यक्ति के जीवन में आय के अनुसार ही व्यय होता है, उसका जीवन सुखी होता है, उसका चित्त प्रसन्न होता है, उसका धर्म-ध्यान आदि भी प्रसन्नतापूर्वक चलता रहता हैं। आजकल अनेक व्यक्ति यह मानते और कहते हैं कि हम अर्जित करते हैं और हम व्यय करते हैं, उसमें अन्य व्यक्तियों को क्या ? ऐसे वाक्य बुलवाता है धन का अहंकार। धन का पारा जब मानव-मस्तिष्क में ऊपर चढ जाता है तब से ही भूलों के चक्रव्यूह का चित्रण प्रारम्भ हो जाता है,जीवन के पिछले द्वार से बर्बादी प्रविष्ट हो जाती है, परन्तु अभागे मनुष्य उसका प्रवेश तक ज्ञात नहीं कर पाते। गृहस्थ को कितना व्यय करना चाहिये ? गृहस्थ व्यवस्था में रहने वाले संसारी मनुष्य को धन का व्यय तो करना ही पड़ता है, परन्तु वह व्यय किस प्रकार करना चाहिये ? किस प्रकार का व्यय उचित कहा जाता है उस विषय में Brease 1579080500
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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