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________________ राम जैसे ज्येष्ठ एवं समर्थ पुत्र विद्यमान हो तो भरत को राज्य-सिंहासन पर कैसे बिठाया जा सकता है ? इस प्रकार दशरथ अत्यन्त परेशानी में पड़ गये। पिता की व्याकुलता दूर करने और उनका मार्ग निष्कंटक करने के लिये अत्यन्त प्रसन्नता पूर्वक राम ने वनवास जाने का निश्चय किया और इस प्रकार अपनी अद्वितीय पितृ-भक्ति के द्वारा भारत के सन्तानों के लिये अपार आदर्श बता कर राम भारत के एक महा-पुरुष के रूप में विख्यात हुए। माता-पिता के अप्रतिकार्य उपकार - शास्त्रों ने माता-पिता के उपकारों को 'अप्रतिकार्य' बताया है। अप्रतिकार्य से तात्पर्य है कि जिनका बदला नहीं चकाया जा सके वे। बात भी सत्य है क्योंकि बाल्यावस्था और अज्ञान अवस्था में माता-पिता ने जो उपकार किये हैं उनसे अनेक गुनी माता-पिता की सेवा पुत्र करे तो भी उसका बदला नहीं दिया जा सकता। पुत्र के बचपन, अज्ञान एवं अशक्ति के जैसी दशा तो माता-पिता की कदापि होती ही नहीं, जिससे माता-पिता की सेवा करने का अवसर तो प्राप्त होता ही नहीं। तदुपरान्त माता-पिता ने पुत्र में जो धार्मिक एवं व्यावहारिक सुसंस्कार भरे हैं, उसे न्याय, नीति, सदाचार, विनय, सेवा-करूणा आदि की उच्च शिक्षा प्रदान की है उन उपकारों का बदला तो अपनी चमड़ी के मोजे बनाकर माता-पिता को पहनाये तो भी नहीं चुकाया जा सकता। इस कारण ही तो कहा है कि "एक माता जो संस्कार एवं सच्ची शिक्षा प्रदान कर सकती है वह शिक्षा एक हजार शिक्षक भी प्रदान नहीं कर सकते।" माता-पिता के अनुकम्पा-प्रेरित' मृत्यु की नीच बात - माता-पिता के ऐसे असीम उपकारों की बात के समक्ष जब वृद्धावस्था एवं रोग से पीड़ित माता-पिता को मारकर उन्हें तुरन्त दुःख-मुक्त करने की और ऐसी मृत्यु को अनुकम्पा-प्रेरित मृत्यु का सुन्दर नामकरण करने की जो बातें आज चल रही हैं उसका विचार करने पर कलेजे में काला नाग काटने की भीषण वेदना जागृत होती है। मृत्यु और फिर अनुकम्पा (दया) से प्रेरित! कैसी विसंवादी बातें हैं! कैसी मूर्खता! भारतीय संस्कति में किसी की किसी भी परिस्थिति में हत्या करना क्रूरता मानी जाती है, क्योंकि कोई भी जीव चाहे जैसी अवस्था दशा में हो मरना नहीं चाहता। जिसे मरना नहीं है उसे मार डालने की प्रवृत्ति क्रूरता नहीं है तो और क्या हैं ? उसमें भी यह तो असीम उपकारी माता-पिता के रोग-ग्रस्त होने से उन्हें मार डालने की बात है। इसे दुष्टता की पराकाष्ठा नहीं कहा जाये तो क्या कहा जाये ? सत्य बात तो यह है कि माता-पिता को दुःख-मुक्त करने की बात वे बहाने उन्हें मृत्यु के मुँह में धकेल कर उनकी सेवासुश्रुषा करने के कष्ट में से हम ही मुक्त होकर शान्ति अनुभव करते हैं। Recse 138900000
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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