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________________ MAGARIKS000000000 अनेक उपकारों का यदि विचार किया जाये तो उसकी एक लम्बी सूची होगी। ऐसे असंख्य उपकार करने वाले माता-पिता की पूजा-भक्ति करने का सतपुरुषों का सदुपदेश पूर्णत: यथार्थ ही है। ऐसे माता-पिता के चरणों में प्रात: उठकर नमस्कार करना प्रत्येक पत्र का अनिवार्य कर्तव्य है। मातापिता के चरण-स्पर्श करने से संस्कार से कैसी उत्तम स्थिति का सृजन होता है उस सम्बन्ध में एक सत्य घटना यहाँ प्रस्तुत है। पुत्रों के संस्कार ने पिता को सुधारा - . बम्बई के माटुंगा उपनगर के वे करोड़पति सेठ थे। उन्होंने अपने दोनों युवा पुत्रों को एक पूज्य आचार्य भगवंत द्वारा आयोजित ज्ञान-शिविर में भेजा। आचार्य श्री के परिचय एवं ज्ञानोपदेश द्वारा माता-पिता के उपकार का ज्ञान होने पर जब वे अपने पिता के चरण-स्पर्श करने के लिये गये तब उनके पिता पुत्रों के जीवन में इतना परितर्वन देखकर आश्चर्य चकित हो गये। पिता ने पुत्रों को पूछा "पुत्रो। आज कोई विशेष प्रयोजन नहीं है फिर भी तुम मेरे चरण स्पर्श करने के लिये क्यों आये है ?" तब उन्होंने ज्ञान-शिविर में माता-पिता के उपकारों से परिचित होने तथा भविष्य में नित्य प्रात:काल में उनके चरण-स्पर्श करने के अपने सकल्प की बात कही, तो तुरन्त पिता ने दोनों पुत्रों के चरण-स्पर्श करने से रोका और वे समीपस्थ कक्ष में चले गये। कुछ ही क्षणों में पिता पुन: बाहर के कक्ष में आये और उन्होंने पुत्रों से कहा - "अब तुम मेरे चरणों का स्पर्श कर सकते हो।" तब पुत्रों ने पूछा "पिताजी। अब क्यों? आप भीतर क्यों गये थे?" पिता ने उत्तर दिया, "पुत्रों। तुम ज्ञान-शिविर से माता-पिता के चरण स्पर्श करने का संस्कार लाये हो, परन्तु मुझे तो आज तक यह संस्कार प्राप्त नहीं हुआ था। मैंने अपने माता-पिता को कदापि नमस्कार नहीं किये, परन्तु जब आज तुम मुझे नमस्कार करने के लिये आये तब मुझे विचार आया कि जबतक मैं अपनी जीवित माता के चरणों में नमस्कार न करूं तब तक तुम्हारा नमस्कार (पाय लागन) स्वीकार करने का मुझे कोई अधिकार नहीं है। पुत्रो। तुम्हारे इस उत्तम संस्कार ने मुझ में भी मातृ-पूजा के संस्कार को आज जीवित कर दिया।" पिता की बात सुनकर पुत्रों की आँखों में भी हर्षाश्रु उमड़ आये। बात यह है कि सन्तानों को प्राप्त उत्तम संस्कार कभी - कभी घर के माता-पिता आदि परिवारजनों के लिये भी सुन्दर प्रेरणा के निमित्त बन जाते हैं। कुणाल की पितृ-भक्ति - कुणाल की अदभुत पितृ भक्ति का उदाहरण इतिहास में प्रसिद्ध है। सम्राट अशोक महान् के प्रिय पुत्र कुणाल की माता का उसके बाल्यकाल में ही निधन हो गया था। उसकी सौतेली माता GROSS 1359000000000
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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