SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ MERESEA000000 उपकार कैसा ?" कैसा विकृति युक्त प्रश्न है। वर्तमान शिक्षा प्राप्त करके केवल बुद्धिजीवी बना युवक क्या ऐसे ही कुतर्क करेगा ? वह चिन्तक प्रतिभाशाली था। उसने कहा, मित्र। थोड़े समय के लिये मान ले कि तुम्हारी बात सत्य है परन्तु तुझे और मुझे, तेरी और मेरी माता ने गर्भावस्था में हमें जीवित रहने दिया और नौ-नौ माह तक अपने उदर में लिये हुए वह घूमी, भयानक पीड़ा सहन करके हमें जन्म दिया और आज तक जीवित रहने दिया, यह वर्तमान गर्भता के क्रूर एवं नृशंस युग में माता का उपकार है अथवा नहीं ? उसने गर्भावस्था में हमारे जीव का गर्भपात करा दिया होता तो उनके भोग-विलासमय जीवन को कही भी आंच आने वाली नहीं थी। परन्तु हम जीवित है यही उन मातापिता का कैसा अद्भुत उपकार है ? स्मरण रहे- इस प्रकार के प्रश्न वर्तमान अति बुद्धिवाद और विलासिता की विकृति का परिणाम है। हमें उनमें बहना नहीं चाहिये। गर्भावस्था में भी माता ने हमारे लिये कितनी कितनी चिन्ता की है ? माता की कोई अल्प भूल भी बालक की देह, मन और संस्कारों के लिये अत्यन्त हानिप्रद हो सकती है। कल्पसूत्र ग्रंथ में सुबोधिका टीका के कर्ता महर्षि-पुरूष ने गर्भवती स्त्री के अत्यन्त रूदन, हंसी, अंजन आदि को तथा काम-सेवन आदि की बालक को कितनी हानि उठानी पड़ती है जो विस्तार पूर्वक स्पष्ट किया गया है, जिसे भाविक श्रोता आदि व्यवस्थित रूप से श्रवण करते होंगे तो उसका उन्हें ध्यान होगा। माता-पिता द्वारा प्राप्त देह का कितना मूल्य ? इस समस्त चिन्ता-जनक स्थिति में से हमारी माताओं ने हमें सकुशल निकाल दिया और हमें सर्वांग परिपूर्ण मानव देह समर्पित की, यह उपकार क्या कम हैं ? यदि कोई सेठ हमें धंधे में सहायता करता है, धन-सम्पत्ति प्रदान करता है, सस्ते किराये में आवास हेतु घर देता है, आपत्ति के समय कोई हमारी धन से, मन से, हिम्मत बंधाकर अथवा समय एवं शक्ति से हमारी सहायता करता है तब उन-उन व्यक्तियों का हम कितना उपकार मानते हैं ? विशिष्ट उपकारी-पुरूषों का उपकार हम आजीवन नहीं भूलते। वर्षों के पश्चात् यदि वे उपकारी व्यक्ति हमें मिलें तो उनके प्रति हमारा हृदय सद्भाव से गद्गद् हो जाता है। सज्जन मनुष्य का हृदय पुकार उठता है कि इस उपकारी का बदला __ मैं किस तरह, कैसा अवसर प्राप्त होने पर चुका सकता हूँ?" तो फिर जिन्होंने हमारे समस्त सांसारिक सुखों की मूल कारण स्वरूप मानव देह हमें अर्पित की उन माता-पिता का उपकार कितना गुना होगा, उस का लेखा-जोखा कभी कर देखा। __ यदि माता-पिता के द्वारा सुरक्षित मानव-देह हमें प्राप्त नहीं हुई हो तो धन-सम्पत्ति का, मकान का अथवा अन्य किसी शारीरिक-मानसिक उपकार का हमारे लिये फूटी कौड़ी जितना भी मूल्य होता ? अरे। धन, मकान अथवा कोई अन्य सुख-सामग्री तो साधन है, भोग्य है, परन्तु इन सबकी भोक्ता मानव देह ही न हो तो उस धन आदि का मूल्य कितना ? मिट्टी जितना, कदाचित्
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy