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________________ RRENCES90900000 उत्तर - प्रश्न अत्यन्त रोचकहै, परन्तु इसका उत्तर इससे भी रोचक है। श्री जिनेश्वर भगवान विश्व के समस्त जीवों के आत्म-कल्याण के सदैव हित-चिन्तक हैं, इतना ही नहीं वे मुक्ति मार्ग के मंगल पथ-प्रवर्तक भी हैं। अत: वे इस विश्व के सर्वोत्तम उपकारी हैं। द्वितीय श्रेणी के उपकारी हैं सद्गुरू भगवंत जो हमें सद्धर्म का पथ बतलाते हैं, हमें धर्मदेह प्रदान करते हैं, हमारा आध्यात्मिक निर्माण करते हैं। आध्यात्मिक निर्माण एवं आत्म-सूख के सच्चे पथ-प्रदर्शक अरिहंत भगवान और सद्गुरूदेव हैं। अत: उनका उपकार अनन्त है फिर भी अरिहंतो का अमूल्य जिन-शासन और सद्गुरूदेवों द्वारा समझाया हुआ सद्धर्म यह सब किसके प्रताप से प्राप्त हुआ ? माता-पिता के प्रताप से। यदि माता-पिता ने हमें जन्म नहीं दिया होता, जीवन हीं दिया होता और दूसरे भी महत्वपूर्ण उत्तम संस्कार यदि हमें में नहीं डाले होते तो क्या हम सद्गुरूओं तक पहुंच पाते ? नहीं, कदापि नहीं। जिस प्रकार जिन-शासन और सद्गुरू हमें धर्म-देह प्रदान करते हैं और हमारा आध्यात्मिक निर्माण करते हैं, उसी प्रकार से माता-पिता हमें तन प्रदान करते हैं और हमारा सांसारिक एवं व्यावहारिक निर्माण करते हैं। माता-पिता का मानव देह एवं उत्तम प्राथमिक संस्कारों के प्रदान करने का उपकार प्रत्यक्ष है, निकटस्थ है। जिसे यह नहीं दिखाई देता हो वह गुरूओं एवं अरिहंतो के परोक्ष उपकार को कैसे देख सकता है ? जो व्यक्ति माता-पिता के सांसारिक उपकार को भी स्वीकार करने के लिये तत्पर नहीं है वह देव एवं गुरू के आध्यात्मिक उपकारों का किस प्रकार स्वागत कर सकेगा? माता-पिता का उपकार आकाश जितना जिस माता ने हमें जन्म दिया, जन्म देने से पूर्व नौ-नौ माह तक गर्भावस्था की पीड़ा सहन की, प्रसूति की भयंकर वेदना सहकर भी जिसने हमें जीवन दिया, तत्पश्चात् बाल्यकाल में हमें अपना दुग्ध पान कराया जिसके लिये उसने अपना सहज सौन्दर्य खोया, निर्धनता में भी जिसने स्वयं आधी भूखी रहकर हमें पूरा भोजन कराया - हमारी उदर पूर्ति की, बचपन में अज्ञानवश हमारे द्वारा पेशाब किये हुए भीगे बिस्तर पर सोकर जिसने हमें सूखे स्थान पर सुलाया, हमारे मल-मूत्र को भी जिसने तनिक भी मुँह बिगाड़े बिना धोया, स्वच्छ किया, हमें सुसंस्कारी बनाने के लिये जिसने अथक परिश्रम किया उस माता का हम पर कितना उपकार ? आकाश जितना असीम। जिस पिता ने निरन्तर नौकरी-धंधा करके हमारे लिये धन उपार्जित किया, जिसकी प्राप्ति के लिये जिसने कभी-कभी अकरणीय अन्याय एवं अनीति भी की और हमें खान-पान, वस्त्र आदि की जीवन निर्वाह हेतु आवश्यक समस्त वस्तुएँ प्रदान की, जिसने अपने जीवन के बहुमूल्य समय की अनेक वर्षों की हमारे लिये बलि दी, समय-समय पर प्यार एवं प्रकोप करके जिसने हमारे संस्कारनिर्माण की समस्त चिन्ता की उस पिता का हम पर कितना उपकार ? आकाश जितना अनन्त। RECEROSS 13190900906
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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