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________________ 3300 1 5050505ox इन्द्रभूति अहंकार से भगवान महावीर से लड़ने गया और भगवान के सत्संग से वह 'विनय मूर्ति गौतम' हो गया। चण्डकोशियानेभगवान को डंक मारा और भगवान के प्राण हरने का प्रयास किया और इस प्रकार भी उनके संग से वह सुधर गया। परन्तु हम भगवान के चरणों का नित्य भक्ति-पूर्वक स्पर्श करने के लिये जाते हैं फिर भी नहीं सुधरें, संतो- सद्गुणों के नित्य प्रवचन सुन-सुनकर भी सीधे नहीं हो सके तो हम उस चण्डकोशि और भील से भी निम्न कोटि के हो गये और तो भी साँप जितनी योग्यता नहीं रखने वाले हम 'श्रावक' के रूप में अहंकार से भी मुक्त नहीं हैं? यह तो कितनी दुःखदायी बात है ? सर्वप्रथम पात्रता प्राप्त करें, फिर देखें, संतो का संग हमारे जीवन के रंग में परिवर्तन लाता है अथवा नहीं ? Leccecessa ese 128 505000595.
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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