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________________ cece अपना बन जाता है, ऐसी सुन्दर उनकी शैली एवं उनका सान्निध्य होता है। 'क्षणमपि सज्जनसंगति रे का भवति भवार्णव तरणे नौका।।' सज्जन पुरुष की, साधु-पुरुष की एक क्षण भर की संगति भी संसार सागर को पार करने के लिये नौका के समान है। सत्संग के प्रभाव से शराबी अधिष्ठायक देव बना - 3950500051 - एक सालवी मदिरा का भयंकर व्यसनी था। वह घंटे भर भी मदिरा पान किये बिना रह नहीं सकता था। मदिरा के नशे के कारण वह ऐसा दुराचारी, व्यभिचारी हो गया था कि उस गाँव की स्त्रियां भी उससे दूर भागती थी । शिष्ट पुरुष उसे दया का पात्र मानते। वे सब मदिरा-पान की उसकी कुटेव के कारण उसकी दुर्दशा होती देखकर दुःखी होते, परन्तु कोई उसको मदिरा-पान की आदत छुड़ा नहीं सकता था। एक दिन उस गाँव में एक मुनिराज पधारे। वे नित्य सुमधुर शैली में प्रवचन - गंगा प्रवाहित करते। सद्भाग्यवश उस सालवी का घर पास ही था। कोई कल्याण - मित्र उसे एक दिन साधु-भगवंत के प्रवचन में खींच लाया । और वहां आश्चर्य हो गया। मंदिरा के नशाबाज को मुनिराज का प्रवचन करने का भी नशा चढ गया । निरन्तर चार दिनों तक मुनिराज की हृदयस्पर्शिनी वाणी का श्रवण करके सालवी का कठोर हृदय भी परिवर्तित हो गया था। जब मुनिराज के विहार की तिथि आई तो सालवी मुनिवर के समीप बैठा, उनका वन्दन करके वह फूट-फूट कर रूदन करने लगा। मुनिराज ने पूछा - "भाई। क्या बात है ? इतना रूदन क्यों कर रहे हो ?‘” इतना कहकर उन्होंने मातृवत् वात्सल्य पूर्ण हाथ उसकी पीठ पर फिराया । सभी मनुष्यों द्वारा तिरस्कृत सालवी को मुनिवर का यह वात्सल्य अपार आनन्द-1 द-विभोर कर गया। सालवी ने मुनिवर के चरणविन्द को अपने अश्रु - बिन्दुओं से प्रक्षालित करते हुए कहा “गुरूदेव । क्या करूँ ? आप मुझे बचा लीजिये। मैं मदिरा के घोर व्यसन में फँस गया हूँ। मैं किसी भी दशा में मंदिरा का परित्याग नहीं कर सकता, परन्तु आपके प्रवचनों को श्रवण करने के पश्चात् अब मुझे जीवन में कुछ धर्म प्राप्त किये बिना शान्ति नहीं मिलेगी।" “यदि मदिरा प्राप्त होने में तनिक विलम्ब हो जाये तो भी वह मुझसे सहन नहीं होता, मेरे हाथों-पाँवो की नसे खिंचने लगती हैं। मेरा सिर चकराने लगता है। गुरूदेव ! इस भयंकर पाप में से मेरा उद्धार करो।' इतना कहकर वह पुन: रोने लगा। - मुनिराज ने उसे कहा "तुम शान्त हो। तुमने यदि मदिरा का पूर्णतः परित्याग नहीं हो सकता हो तो मैं कहता हूँ वैसे करो। जब तुम मदिरा पान करो तब पूर्णत: पेट भरकर पी लेने के पश्चात् एक डोरी को गाँठ लगाना और पुनः जब मदिरा-पान करना हो तब तुम उस गाँव को खोल देना। तत्पश्चात् पुनः इच्छानुसार मंदिरा पान करके पुनः उस डोरी के गाँठ लगा देना। यह डोरी नित्य तुम्हारे पास ही रहनी चाहिये। जितने समय तक मंदिरा की गाँठ रहे उतने समय तक तुम्हारे 09090 xox 121
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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