SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1000000000 पैंतीस गुण जीव को सुमार्ग पर ले जाते हैं, मोक्ष रूपी मार्ग का अनुकरण करने वाले हैं और इस कारण ही इन्हें मार्गानुसारी के गुण कहा जाता है । परन्तु क्या इन गुणों को प्राप्त करने की हम में योग्यता है ? पात्रता है? पात्रता के बिना कितना ही उत्तम भोजन हो तो भी वह हजम नहीं होता। हम क्या करें तो यह पात्रता आ सकती है? पात्रता की अत्यन्त ही सुन्दर और सरल व्याख्या में आपको कर बतायें। वह व्याख्या सुनते ही आप बोल उठेंगे। - 'तो तो हम अवश्य ही पात्र गुणों को प्राप्त करने के लिये ।' "चाहे ये सद्गुण मुझ में नहीं है, परन्तु ये गुण मुझे प्राप्त करने ही हैं, वे मुझे अत्यन्त प्रिय हैं और उन्हें प्राप्त करने के लिये मुझे अपने शक्ति के अनुसार सब कुछ कर गुजरना है।" बस, इस प्रकार लगन और तमन्ना ही इन गुणों को प्राप्त करने की पात्रता है । "पौद्गलिक पदार्थों में ही सुख है' - इस भ्रामक मान्यता ने ही जीव को ऐसे विपरीत मार्ग पर चढा दिया है कि जिसे सीधे मार्ग पर चढ़ाना एक अत्यन्त ही कठिन कार्य हो गया है। रूपवती पत्नी का पति बन जाने में संसारी जीव ने सुख समझा है। स्वयं के पास स्कूटर होते हुए भी पड़ोसी के घर मारुतिकार आ जाने के कारण वह स्वयं दुःख समझने लग गया है, मारुति कार की प्राप्ति में वह सुख की कल्पना कर रहा है। अपने पड़ोसी के घर अभी तक 'वीडियो ́ नहीं आया परन्तु यदि स्वयं के घर पर 'सोनी टी.वी. तथा वी. सी. आर ́ आ गया हो और शयनकक्ष में डनलप की गद्दी पर सोते-सोते अपनी इच्छित फिल्मों की केसेट वह देख सकता है तो वह स्वयं को अत्यन्त सुखी मानता है। विधान सभा के चुनाव में - कल्पना की हो, अनुमान नहीं लगाया हो तो भी भी चुनाव में उम्मीदवार बनने का टिकट प्राप्त हो जाने के कारण वह स्वयं को अत्यन्त भाग्यशाली समझता है। ज्यों ज्यों मन की आकांक्षाऐं- अपेक्षाऐं पूर्ण होती जाती हैं त्यों त्यों वह स्वयं को अधिकाधिक सुखी मानने लगता है और यदि उक्त आकांक्षा अथवा अपेक्षा पूर्ण नहीं हो तो वह स्वयं को अत्यन्त दुःखी समझने लगता है। पल में प्रसन्न ! पल में अपसन्न! क्षणे रूष्टा: क्षणे तुष्टाः ! ऐसी विवशतापूर्ण, पामर एवं पंगु दशा है इस संसारी जीवात्मा की । पर्युषण में आठ आठ दिनों तक उपवास करने वाला एक दिन निश्चित समय पर दूध प्राप्त न होने पर, चाय पीने में विलम्ब हो जाता है तो वह बिचारा पंगु बन जाता है, उसका सिर चकराने लगता है, वह अपनी ही प्रिय पत्नी पर क्रोधित हो जाता है - गर्मागर्म कड़क मधुर गिरनार की चाय की तरह । see - 505050.00 7
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy