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________________ RECOGERSO9090007 सुलभ हो उस स्थान पर घर लेना चाहिये। जहाँ निम्न स्तर की बस्ती हो उस स्थान पर घर लेने से कैसे भयंकर परिणाम होते हैं उसका एक अन्य प्रसंग प्रस्तु है। संस्कारों की सुरक्षा हेतु पति की हत्या - एक राजपूतानी राजपूत के साथ विवाह करके ससुराल में आई। ससुराल के आस-पास शराबी और गुण्डे रहते थे। राजपूतानी ने सोचा कि ऐसे दुष्ट लोगों के पड़ोस में निवास करने से तो कभी समस्त परिवार का नाश हो जायेगा। उसने वह घर त्याग कर किसी अन्य उत्तम स्थान पर घर लेने के लिये पति को अत्यन्त समझाया, परन्तु मूर्ख पति नहीं माना। दुष्ट संगति का परिणाम उन्हें कुछ ही समय में देखने को मिल गया। वह राजपूत भी उन शराबियों की संगति से मदिरा-पान करने लगा। वह मदिरा पान करके घर आता और नशे में अपनी पत्नी और दोनों बच्चों के साथ मार-पीट करता। जब पति भान में होता तब वह राजपूतानी बार-बार अपने पति को घर बदलने की बात समझाती, परन्तु वह मानता ही नहीं था। एक दिन वह मदिरा के नशे में चूर था। उसकी पत्नी ने उसे हाथ जोड़कर निवेदन किया "अपने बच्चों के लिये ही सही, आप मदिरा की आदत छोड़ दीजिये। आप समस्त परिवार के आधार हैं। यदि आप ही इस प्रकार अपना जीवन नष्ट कर दोगे तो इन बच्चों का क्या होगा?" ___ इस प्रकार कहती हुई पत्नी फूट-फूट कर रोने लगी। इस प्रकार की अनुनय-विनय का प्रभाव होना तो दूर रहा, उल्टा उसका पति उस पर अत्यन्त क्रोधित हुआ। उसका क्रोध उसके वश में नहीं रहा। उसने अपनी पत्नी को इतना पीटा की वह लहुलूहान हो गई। तत्पश्चात् वह शराब के गोदाम पर जाकर पुन: मदिरा पीकर नशे में धुत हो गया। नशे ही नशे में उसने बाहर आकर एक सेठ के पुत्र की हत्या कर दी। देखा, पतन की कैसी खरतनाक परम्परा! इस सबका मूल कारण शराबी लोगों का पड़ोस। ऐसे पड़ोस की अपेक्षा करने से राजपूत के जीवन का सर्वनाश होने लगा। विनाश और आगे बढा। उस मदिरा के नशे में चूर राजपूत को सिपाहियों ने अपनी गिरफ्त मे ले लिया। सेठ ने उसे कारागार में बन्द करा दिया। इस ओर वह राजपूतानी अपने पति के लक से अत्यन्त आहत हो गई। उसके बालकों में ये कुसंस्कार प्रविष्ट न हो जायें इस कारण उसने वह घर बदल दिया। उसने नया घर उत्तम पड़ोसियों के पास लिया और वह अपने बच्चों में सुसंस्कार भरने लगी। एक रात्रि में उसका पति कारागार से भाग निकला और अपना नूतन घर खोजते-खोजते ROGRESS112900000909
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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