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________________ करने में नम्र भाषा का उपयोग किया जाये। इस प्रकार से वह व्यक्ति निश्चित ही सुधरेगा ओर कदाचित् इस प्रकार के प्रयत्न पर भी यदि वह नहीं सुधरे तो भवितव्यता पर सब कुछ छोड़ देना चाहिये। परन्तु किसी व्यक्ति को सुधारने के लिये सार्वजनिक रूप से उसकी कटु आलोचना एवं निन्दा का मार्ग अपनाना तो सर्वथा अनुचित है। अन्य व्यक्ति की निन्दा से आप ही अवगुणी बनेगे - यह एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण बात है कि जिस व्यक्ति की आप अत्यन्त निन्दा करते होंगे, उसका वहीं अवगुण आपके जीवन में प्रविष्ट हुए बिना नहीं रहेगा। बार-बार निन्दा करने से उस निन्दनीय दर्गण में आपका चित्त तदाकार होता जाता है और उससे ही कदाचित वह दुर्गुण आप में प्रतिबिम्बित होकर प्रविष्ट हो जाता है। अत: यदि हम दुर्गणी होना नहीं चाहते तो भी अन्य व्यक्तियों के दुर्गुणों की निन्दा कदापि नहीं करनी चाहिये। दूसरों द्वारा की जाने वाली निन्दा को समभाव से सहन करें अब एक अन्य बात स्मरण रखने योग्य है। जिस प्रकार हमें दूसरों की निन्दा नहीं करनी चाहिये, उसी प्रकार से जब कोई अन्य व्यक्ति हमारी निन्दा करते तब तनिक भी क्रोधित हुए बिना उसे सुन लेना चाहिये। प्रत्यक्ष में अथवा परोक्ष में हमें जब ज्ञात हो कि अमुक व्यक्ति हमारी अत्यन्त आलोचना-निन्दा करता था, तब भी उस पर क्रोध नहीं करना चाहिए। ___उस समय पूर्वकालीन महापुरुषों के क्षमा सम्बन्धी अद्भुत दृष्टान्तों का चिन्तन करना चाहिये, परमात्मा महावीर स्वामी की अनुपम क्षमा के प्रसंगो को बार-बार अपनी दृष्टि के समक्ष लाना चाहिये। झेन साधु क्षमा एवं सहिष्णुता की जीवित मूर्ति तुल्य थे। भर यौवन में भी विशुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन करने से उनकी ललाट तेजस्वी प्रतीत होती थी। उनके रूप एवं तेज के कारण एक युवती उन साधु पर मोहित हो गई। वह उनके समक्ष जाकर विषय-सुख प्रदान करने की याचना करने लगी। ___ साधु ने उसकी याचना ठुकरा दी, जिससे वह युवती क्रोधित हो गई, उसका अहंकार आहत हो गया। अत: उसने बदला लेने की ठान ली। कुछ समय के पश्चात् उस युवती का ही अन्यत्र विवाह हो गया। अपने पति के संसर्ग से वह गर्भवती हो गई और उसके बालक भी उत्पन्न हो गया। उस स्त्री ने उस साध से वैर निकालने के लिये जगत् के समक्ष यह प्रचार किया कि "मेरे बालक का पिता यह झेन साधु ही है, वह ब्रह्मचारी होने का मिथ्या बहाना करता है, वह दम्भी है।" लोग तो मूर्ख होते हैं उन्होंने यह बात सत्य मान ली। फैलते-फैलते यह बात साध के कानों में पहुंची। लोग उन्हें कहने लगे "वह स्त्री आपको अपने बाल का पिता बताती है।" तब साधु ने केवल इतना ही कहा "हाँ, क्या यह बात है ?"
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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