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________________ OROGeo509090090 झंझावात पूर्ण तूफान उठा तब। परन्तु..... परन्तु ....... अनाथता प्रतीत नहीं हुई ..... जिनशासन नहीं प्राप्त होने की कल्पना से अशरणता प्रतीत नहीं हुई .... जिनशासन प्राप्त होने पर भी कदापि ... उसे सफल न करके जीवन के पलों को हम खुल्लम खुल्ला नष्ट कर रहे है तब.... असहायता की अनुभूति नहीं होती सद्गुरूओं की सत्संगति प्राप्त होने पर भी जीवन के किसी रंग में परिवर्तन नहीं होता तब.... व्याकुलता का अनुभव नहीं होता .... जब आप नोटों के बंडलों पर लेटते हैं तब, हजारों भूखों-दुःखियों सह धर्मियों एवं लाखों दीन दुःखियों की दुर्दशा का मन में विचार तक नहीं आता तब। जिन संसारिक सुखों के राग को ज्ञानी तीर्थंकर परमात्माओं ने अनन्त दुःखों का मूल एवं दुर्गतियों का हार बताया, उनके ही पीछे हम घूमते रहे भटकते रहे और वह परिभ्रमण, भटकाव अभी तक चल ही रहा है। इच्छित सुखों को प्राप्त करने और अनिच्छित दुःखों को नष्ट करने के लिये हम 'सब कुछ करने के लिये तत्पर हैं, हाँ सब कुछ करने के लिये। नीति-अनीति, न्याय-अन्याय, धर्म-अधर्म, पाप अथवा पुण्य, विश्वासघात अथवा लूट, चोरी अथवा जुआ किसी भी तरह, किसी भी मार्ग से मनवांछित सुख प्राप्त कर लेना, और किसी भी तरह, किसी भी मार्ग का अवलम्ब ग्रहण कर अनिच्छित दुःख को मिटा डालना। यही है वर्तमान मानव का एकमात्र लक्ष्य । सुख प्राप्त करने योग्य है और दुःख मिटा डालने योग्य है। ये दो मन्त्र वर्तमान मानव को मोहराजा ने इतने पक्के पढ़ा दिये हैं कि वह इनसे विपरीत बात सुनने तक के लिये तैयार नहीं है। __ इन कुसंस्कारों के कातिल बंधन से ऐसा बंध गया है हमारा आतमराम कि उसे अब भाई! तू बंधा हुआ है यह कहकर जागृत करने वाला सद्गुरू मिलने पर भी वह उनकी बात मानने के लिये भयानक रूपसे विवश है। जब तक मैं बंधनों से बंधा हुआ हूँ, सांसारिक सुखों की भयानक राग-दशा एवं दुःखों के प्रति क्रूर द्वेष भावना ही महा बंधन है इस बात का भान ही न हो तब तक उन बंधनों से मुक्त होने की इच्छा ही कैसे हो सकती है? और जब तक उन बंधनों से मुक्त होने की इच्छा न हो तब तब उन बंधनों से मुक्त होने के उपायों को - परमात्म-शासन के द्वारा हमारे पास उपलब्ध होते हुए भी प्राप्त करना हमें सूझे भी कहाँ से? सुखों की वासना एक ऐसी खुजली है कि इसे आप ज्यों ज्यों खुजलोगे त्यों त्यों खुजली अधिकाधिक तीव्र होती जाऐगी, खुजलने से आनन्दानुभूति नहीं होगी, परन्तु आनन्द का आभास GOOGees RSSC9c9c
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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