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________________ १८ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ वे प्रतिदिन स्वद्रव्य से अष्टप्रकारी जिनपूजा एवं उभय काल प्रतिक्रमण करते हैं । हमेशा बियासन का पच्चकखाण करते हैं । ५ साल से प्रति माह उभय पंचमी के दिन उपवास करते हैं । प्रातः जिनपूजा करने के बाद प्रथम बार भोजन करते हैं एवं दूसरी बार दुकान से २ बजे घर जाकर बियासन करते हैं । सूर्यास्त से ९६ मिनिट पहले चौविहारका पच्चरखाण ले लेते हैं । प्रथम बार भोजन के बाद 'वीराणी इलेक्ट्रीक स्टोर्स' नामकी अपनी दुकान में जाने से पहले प्रतिदिन कमसे कम १० रु. जीवदया के कार्यों (पक्षियों को दाना, जलचर प्राणीओं को लोट, कुत्तों को बाजरे की रोटी इत्यादि) में खर्च करते हैं । पिछले ११ साल से पति-पत्नी दोनोंने संपूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार कर लिया है। कई साल तक वर्षमें ६ अठ्ठाइओं के दिनोंमें ८ या ९ उपवास करते थे। सिद्धि तप की महान तपश्चर्या पूर्ण की है । हर अष्टमी एवं पूर्णिमा अमावस्या के दिन उपवास करते हैं । कई बार अठ्ठम तप करते रहते हैं। पिछले ५ वर्षमें वर्धमान तपकी ५६ ओलियाँ पूर्ण कर चुके हैं। वर्धमान तप की १०० ओलियाँ एवं चौविहार उपवास से वीश स्थानक तप पूर्ण करनेकी उनकी तीव्र भावना है । वे सभी उपवास चौविहार ही करते है अर्थात् उपवास के दिन उबाला हुआ अचित्त पानी भी नहीं पीते हैं । चारों प्रकार के आहार का संपूर्ण रूपसे त्याग करते हैं । बियासन के दिनोंमें गर्मी की ऋतुमें भी कुन कुना उष्ण जल ही पीते हैं । पानी को ठंडा करने की कोशिश नहीं करते हैं । हर वर्ष फाल्गुन शुक्ल १३ के दिन वे शत्रुजय महातीर्थ की ६ कोस की प्रदक्षिणा करते हैं, मगर उस दिन वे 'पाल' का भोजन एवं प्रभावना नहीं ग्रहण करते । पालितानामें पू. साधु-साध्वीजी भगवंतों की वैयावच्च भक्ति में ८ हजार रू. का सद्व्यय किया है। . जीवरक्षा के लिए वे पाँव में जूते नहीं पहनते एवं चातुर्मास में जामनगर से बाहर नहीं जाते । सं. २०५३ में भा.सु. १५ के दिन
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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