SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ लालुभा जब गाँव के सरपंच थे तब भी उन्होंने गांव के कई लोगों के झगड़े प्रेमसे समझाकर निपटाये थे, मगर कभी भी किसीसे एक भी पैसा अनीतिसे लिया नहीं था । __(३) छह महिनों का पेटका असह्य दर्द दूर हो गया । ट्रेन्ट गाँवमें डाक वितरण करनेवाले ब्राह्मण ज्ञातीय डाकियेको पेटमें असह्य दर्द हो रहा था । अहमदाबाद जाकर छह महिनों तक कई प्रकार के उपचार कराने के बावजूद भी दर्द शांत नहीं हुआ । आखिर वह लालुभा की शरणमें आया । लालुभाने उसे भी उपरोक्त विधिसे नवकार महामंत्र द्वारा अभिमंत्रित जल पिलाया । दर्द हमेशा के लिए दूर हो गया। (४) बिच्छू का विष उतर गया । एक बार लालुभा को काले बिच्छूने हाथमें डंक मारा । पूरे हाथमें अवर्णनीय असह्य पीड़ा होने लगी । यह देखकर उनकी माने किसी तांत्रिक को बुलाने की कोशिश की । मगर लालुभा ने माँ को रोका एवं स्वयं एक कमरेमें बैठकर, उसका दरवाजा बंद करके, एक घंटे तक एकाग्र चित्तसे श्रद्धापूर्वक नवकार महामंत्र का जप करने लगे । फलतः बिच्छू की भयंकर पीड़ा भी केवल एक ही घंटेमें संपूर्ण रूपसे उपशांत हो जाने से अनेक लोगों को जैन धर्म एवं नवकार महामंत्र के प्रति आस्था उत्पन्न हुई । (५) धरणेन्द्र नागराजने दर्शन दिये एक बार नित्यक्रमानुसार लालुभा जीनमें सामायिक लेकर श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवंत की तस्वीर के समक्ष जप कर रहे थे । सामायिक पूर्ण होने में १० मिनट की देर थी । तब अचानक विशाल कायावाले धरणेन्द्र नागराज वहाँ आ पहुंचे एवं श्री पार्श्वनाथ भगवंत की तस्वीर के ऊपर अपने विशाल फण का छत्र धारण करके कुछ देर तक स्थिर हो गये । यह दृश्य देखकर लालभा स्तब्ध हो गये, मगर वे जपमें स्थिर रहे। गबराकर स्थान नहीं छोड़ा। आखिर थोड़ी देरमें नागराज अपने फणको सिमटकर कोने में रखे हुए लोहेके सामानमें अंतर्हित हो गये । सामायिक पूर्ण होने के बाद लालुभाने वहाँ खोज की, मगर फिर उनके दर्शन नहीं हुए ।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy