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________________ उपहास करने का अवसर ही किसीको कैसे मिल सकता है ? !.... इसीलिए इस पुस्तकमें अर्वाचीन जीवंत दृष्टांतों को ही प्रधानता दी गयी है। इस किताब की गुजराती आवृत्ति में चतुर्थ विभाग के ख्यमें प्राचीन महापुरुषों के दृष्टांत भी संक्षेपमें दिये गये थे, मगर ग्रंथ के परिमाण को मर्यादित बनाने के लिए वह चतुर्थ विभाग इस हिन्दी संस्करण में शामिल नहीं किया गया है । प्राचीन दृष्टांतों के अन्य अनेकानेक पुस्तक उपलब्ध हैं ही, इसलिए प्राचीन दृष्टांतों के जिज्ञासु पाठक उन पुस्तकों से अपनी जिज्ञासा को परितृप्त करें ऐसी अपेक्षा है। प्रस्तुत पुस्तकमें प्रकाशित वर्तमानकालीन दृष्टांत विशेष रुपसे विश्वसनीय बनें और जिज्ञासु आत्माएं उन उन आराधक रत्नों का साक्षात् या पत्र द्वारा संपर्क करके उनकी उपबृंहणा कर सकें और उनके संपर्क से अपने जीवनमें भी वैसे सद्गुण संप्राप्त कर सकें ऐसी भावनासे उन उन आराधक रत्नोंके नाम और पता भी यहाँ प्रकाशित किया गया है । सुज्ञ वाचकवृंदसे नम्र निवेदन है कि हो सके तो उन उन आराधकरत्नोंको एकाध पोष्टकार्ड लिखकर उनकी हार्दिक उपबृंहणा करें, ताकि उनको आराधना में अभिवृद्धि करने का बल मिले और हमारे जीवनमें भी उनके जैसी आराधना करने की शक्ति संप्राप्त हो । गुजराती आवृत्ति की संपादकीय प्रस्तावना में इस सूचनको पढकर अचलगच्छीय मुनिराज श्री सर्वोदयसागरजीने और राजकोट निवासी सुश्रावक श्री सुभाषचंद्र मोदीने प्रस्तुत पुस्तकके प्रथम और द्वितीय विभाग के सभी दृष्टांत पात्रों को पत्र लिखकर अनुमोदना की थी, इसलिए वे भी धन्यवाद के पात्र हैं । अन्य पाठकगण भी इसका शुभ अनुकरण करेंगे ऐसी आशा है । प्रायः प्रत्येक बातोंमें लाभ-हानि दोनों अल्प या अधिकांश रूपमें सम्मिलित होते हैं, इसी तरह इस किताब के दृष्टांतपात्रों का नाम और पता प्रकाशित करने में उपर्युक्त प्रकारसे 381
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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