________________ 408 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 2 स्वयं ही करती हैं। किसी भी प्रकार के प्रमाणपत्र, गोल्ड मेडल या प्रसिद्धि की अपेक्षा रखे बिना केवल कर्तव्य बुद्धि से उनकी सेवा का मिशन 37 साल से अविरत चालु है। रतनबाई की जीवदया की विरासत उनकी संतानों को अच्छी तरह से संप्राप्त हुई है / उनके एक सुपुत्र एवं एक सुपुत्रीने सर्वजीवों को अभयदान देनेवाली भागवती प्रव्रज्या का स्वीकार किया है / वे आज अचलगच्छ में मुनिराज श्रीरत्नाकरसागरजी एवं सा. श्री श्रुतगुणाश्रीजी के रूपमें संयम का अच्छी तरह से पालन कर रहे हैं / अन्य दो सुपुत्र जितेन्द्रकुमार एवं बिपीनकुमार के मनमें भी संयम के मनोरथ चालु हैं / एक सुपुत्र प्रवीणभाई की 5 साल पूर्व में शादी हुई तब शादी के दिन से ही उन्होंने संकल्प किया था कि जब तक कच्छमें विहरते हुए भाई म.सा. के दर्शन नहीं कर सकुं तब तक ब्रह्मचर्य का पालन करूँगा / करीब दो महीनों के बाद भाई महाराज के दर्शन हुए तब तक संकल्प के अनुसार ब्रह्मचर्य पालन किया / शादी के एकाध महिने पश्चात् वे अपनी धर्मपत्नी के साथ पालिताना आये थे तब आजीवन प्रतिवर्ष 6 अठ्ठाइयों में ब्रह्मचर्यपालन की प्रतिज्ञा, एवं उपर्युक्त संकल्प के अनुसार अभिग्रह पच्चक्खाण भी मुझसे लिया था / . . धन्य है ऐसी रत्नकुक्षि सुश्राविका को कि जिन्होंने स्वयं जीवदया का सुंदर पालन किया और समाज को और संतानों को भी नि:स्वार्थ सेवा का आदर्श दिया है। रतनबाई के दृष्टांत में से प्रेरणा लेकर सभी श्रावक-श्राविकाएँ नि:स्वार्थ सेवा और संयम को अपने जीवन में आत्मसात् करके अपनी संतानों में भी ऐसे सुसंस्कारों का सिंचन करें यही शुभ भावना / पता : रतनबाई राघवजी केशवजी शाह 108/192, डॉ. मस्कार हेन्स रोड़, श्रीफ बिल्डींग, दूसरी मंजिल, मझगाँव - मुंबई 400010.