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________________ 402 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 2 174 अहिंसा की देवी स्व. गीताबहुन बचुभाई गंभिया जिस भारत देश में एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के सभी जीवों को आत्म तुल्य मानकर उनकी रक्षा करने का उपदेश देनेवाले अनेक तीर्थंकर उत्पन्न हुए हैं ... अन्य भी अनेक करुणावंत संत-महापुरुष पैदा हुए हैं, जिन्होंने छोटे छोटे जीवों की रक्षा करने के लिए अपने प्राणोंका भी बलिदान दे दिया है, ऐसे अहिंसाप्रधान देश में आज, काल के प्रभावसे हजारों छोटे-बड़े यांत्रिक बूचड़खानों में प्रतिदिन लाखों अबोल पंचेन्द्रिय प्राणिओं की निर्दयता पूर्वक कत्ल हो रही है तब अहिंसाप्रेमी अनेक आत्माओं को आघात लगना स्वाभाविक है। फिर भी आज तथा प्रकार के सरकारी कानूनों के कारण उन सभी बूचड़खानों को बंद कराने की बात तो अशक्य प्रायः लगती है, लेकिन जीवरक्षा के कुछ कानूनों की परवा किये बिना गैरकानूनी रूपसे भी हररोज हजारों-लाखों जीव बूचड़खाने आदि में अत्यंत कूरता से हलाल हो रहे हैं / ऐसे अबोल जीवों की रक्षा के लिए कुछ विरले नररत्न और नारीरत्न आज भी अपने प्राणों की परवा किये बिना झूझ रहे हैं / उनमें से 6 साल पहले पशुरक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देनेवाली श्रीमती गीताबहन गंभिया की हिंमत सचमुच अत्यंत सराहनीय है / / मूलत: राजस्थान में उत्पन्न और कच्छ-रामाणिया के बचुभाई रांभिया नाम के जैन श्रावक के साथ मुंबई में विवाह संस्कार से संबद्ध गीताबहन पिछले करीब 15 वर्षों से अहमदाबाद में अपने पति के साथ "हिंसा निवारण संघ" में गैरकानूनी पशुवध को रोकने का सत्कार्य करती थीं / इस संस्था के मानद इन्सपेक्टर वर्मा बंधुओं की कसाईओं द्वारा इ.स. 1986 में हत्या होने के बाद उनकी जगह पर गीताबहन को उनकी हिंमत 'आदि से प्रभावित होकर उपर्युक्त संस्थाने नियुक्ति की थी / ___मुंबई सेन्ट झेवियर्स कोलेजमें M.A. तक पढी हुई गीताबहन का हृदय निर्दोष प्राणीओं की बेरहम हत्या से काँप उठता था और मर्द
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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