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________________ ३७६ १६१ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - विवाह होने के बावजूद भी आबाल ब्रह्मचारिणी विजयाबहन का विस्मयकारक विमल व्यक्तित्व गुजरात में खंभात नगर करीब ९० जिनमंदिरों से अलंकृत है । इस नगर में सुश्रावक श्री अंबालालभाई एवं सुश्राविका श्री मूलीबहन का परिवार एक धर्मनिष्ठ परिवार के रूप में सुप्रसिद्ध है । इसी दंपति के एक सुपुत्र ने प्रेमसगाई होने के बाद वर्धमान तपोनिधि प.पू. आ.भ. श्रीमद्विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी म.सा. की वैराग्यवाहिनी देशना सुनकर शादी किये बिना ही वि.सं. २००८ में दीक्षा अंगीकार की और आज वे वैराग्यदेशनादक्ष प.पू.आ.भ. श्रीमद् विजयहेमचंद्रसूरीश्वरजी म.सा. के रूप में अद्भुत शासन प्रभावना कर रहे हैं । वि.सं. २००९ के कार्तिक महिने में खंभात नगरमें प.पू. आ.भ. श्रीमद्विजयभुवनभानुसूरीश्वरजी म.सा. की पावन निश्रामें उपधान तप का आयोजन हुआ था तब उपर्युक्त सुश्राविका मूलीबहन के साथ उनकी १६ वर्षीय कु. विजया भी अपने उपर्युक्त भाई महाराज साहब की प्रेरणा से उपधान तप में शामिल हो गई । प्राचीन काल की प्रथा के अनुसार कु. विजया जब ९ सालकी नटखट कन्या थी तब उसकी सगाई श्रीप्रविणचंद्र रमणलाल पारेख नामके विसा ओसवाल ज्ञातीय बाल श्रावक के साथ हो गयी थी । मगर उस उम्र में उसे सगाई से कोई संबंध नहीं था । वह तो बाल सुलभ क्रीडा और खाने-पीने में मस्त थी । उपघान की पूर्णाहुति के प्रसंग पर कु. विजया ने उपर्युक्त वर्धमान तपोनिधि प.पू. आचार्य भगवंत श्री की प्रबल प्रेरणा से ५ साल तक ब्रह्मचर्य व्रत की प्रतिज्ञा लेकर उपधान की माला पहनी !!!... तब लोग कहने लगे- 'तू तो तेरे भाई महाराज की सच्ची बहन बनेगी ऐसा लगता है, मगर तुझे मालुम है कि तेरी शादी थोड़े दिनों में हो जायेगी, फिर तेरे व्रतका क्या होगा ! '... और कुछ हुआ भी वैसा ही ! व्रत स्वीकार के केवल ३
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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