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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ ३७१ यश और आदेय नामकर्म इतना प्रबल कोटिका उत्पन्न हुआ कि मोक्षमें जाने के बाद भी उनके अधिष्ठायक देव धरणेन्द्र-पद्मावती अत्यंत जागरूक होने से पार्श्वनाथ भगवान की विशिष्ट भक्ति करनेवाले श्रद्धालुओं के विघ्नों को दूर करते हैं और प्रभुभक्ति में सहायक बनते हैं । इसी कारण से वर्तमान में शासन भगवान श्री महावीर स्वामी का होते हुए भी श्रीपार्श्वनाथ प्रभुजी के तीर्थ और मंदिर प्रभु महावीर के तीर्थ और मंदिरों की अपेक्षा से अधिक संख्या में दृष्टिगोचर होते हैं । पुरूषादानीय : श्रीपार्श्वनाथ प्रभुजी के सैंकड़ों तीर्थोंमें भी प्रकट प्रभावी श्री शंखेश्वरजी पार्श्वनाथ तीर्थ की महिमा सबसे अधिक है, क्योंकि गत चौबीसी के ९ वें तीर्थंकर श्री दामोदर स्वामी के समय में अषाढी श्रावकने अपना निर्वाण पार्श्वनाथ भगवान के गणधर बनकर होने की बात तीर्थंकर परमात्मा द्वारा ज्ञात होने पर अपने भावि परमोपकारी श्री पार्श्वनाथ परमात्मा का बिम्ब बनवाकर आजीवन पूजा की थी । बाद में विविध देव निकायों में इन्द्र आदि अनेक देव-देवियों द्वारा भी उसी जिनबिम्ब की पूजा हुई और आखिर जरासंध प्रतिवासुदेव द्वारा प्रयुक्त जरा विद्या के प्रभावसे ग्रसित अपने सैन्य की मूर्छा दूर करने के लिए श्री कृष्ण वासुदेव ने श्री नेमिनाथ भगवान (राज्यावस्था में ) द्वारा प्रदत्त सूचना के अनुसार अठुम तप से प्रसन्न पद्मावती देवी से प्राप्त उपरोक्त जिनबिम्ब के स्नात्रजल से अपने सैन्य को स्वस्थ बनाया और बादमें शंखध्वनि पूर्वक शंखेश्वर नगर बनाकर उसी नगर में उपर्युक्त जिनबिम्ब की स्थापना करवायी तभी से लाखों भक्तों द्वारा प्रपूजित परमात्मा की महिमा कलियुग में भी दिनप्रतिदिन अधिकाधिक बढती जा रही है । ___ प्रतिदिन सैंकडों श्रद्धालु भक्त गुजरात, राजस्थान, मुंबई इत्यादि से शंखेश्वर तीर्थमें पधारकर सुबह से शाम तक भगवान की पूजा-सेवा-भक्ति करते रहते हैं । पोष दशमी के दिन करीब ५ हजार से अधिक भाग्यशाली अठुम तप द्वारा वहाँ परमात्मा की पर्युपासना करते हैं। उसी तरह प्रत्येक महिने के पूर्णिमा के दिन भी करीब ५ हजार जितने भाग्यशाली दूर-सुदूर से शंखेश्वर आकर प्रभुभक्ति करते हैं । कई भाग्यशाली कुछ वर्षों से प्रत्येक पूर्णिमा के दिन नियमित रूप से शंखेश्वर तीर्थ में पधारकर प्रभुपूजा-भक्ति करने द्वारा धन्यता का अनुभव करते हैं, वे 'पूनमिया यात्रिक' भी कहे जाते हैं ।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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